बिहार में इंसेफ्लाइटिस (चमकी बुखार) से 31 बच्चों की मौत हो गई है। मौतों का यह आंकड़ा अकेले मुजफ्फपुर का है। मेडिकल कॉलेज अधीक्षक सुनील शाही की माने तो 2 जून के बाद से इंसेफ्लाइटिस के 86 मामले सामने आए हैं। इनमें 31 बच्चों की मौत हो गई। जबकि जनवरी से लेकर 2 जून तक 13 मामले सामने आए थे, जिसमें 3 की मौत हो गई थी।
15 वर्ष तक की उम्र के बच्चे इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। इस कारण मरने वालों में अधिकांश की आयु एक से सात वर्ष के बीच है। इस बीमारी का शिकार आमतौर पर गरीब परिवार के बच्चे होते हैं। डॉक्टरों के मुताबिक, इस बीमारी का मुख्य लक्षण तेज बुखार, उल्टी-दस्त, बेहोशी और शरीर के अंगों में रह-रहकर कंपन (चमकी) होना है।
गौरतलब है कि हर साल इस मौसम में मुजफ्फरपुर क्षेत्र में इस बीमारी का कहर देखने को मिलता है। पिछले साल गर्मी कम रहने के कारण इस बीमारी का प्रभाव कम देखा गया था। इस बीमारी की जांच के लिए दिल्ली से आई नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल की टीम और पुणे के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) की टीम भी मुजफ्फरपुर का दौरा कर चुकी है।
बिहार में हर साल की तरह इस साल भी इस बीमारी से मरने वालों की संख्या 36 तक पहुंच गई है। हालांकि सरकार अभी 11 मौतों की ही बात कर रही है। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने कहा कि मुजफ्फरपुर में 11 बच्चों की मौत हुई, जिसमें एक बच्चे की मौत एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम (एईएस) से हुई है। उन्होंने कहा कि अन्य बच्चों की मौत हाइपोग्लाइसीमिया यानी अचानक शुगर की कमी से हुई है। इधर, मुजफ्फरपुर के एसकेएमसीएच और केजरीवाल अस्पताल में संदिग्ध एईएस या चमकी बुखार से मरने वालों की संख्या 36 तक पहुंच गई है।