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शांत से मनमोहन ने लिखा था नए भारत का इतिहास?

डेस्क |

तारीख थी 3 जनवरी, 2014… तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एक पत्रकार वार्ता में थे तभी एक पत्रकार ने तीखा सवाल पूछते हुए UPA सरकार को कटघरे में ला खड़ा किया। मनमोहन सिंह ने अपने जानेमाने अंदाज में सवाल सुना और शांति से जवाब दिया – इतिहास तय करेगा कि मेंने कैसा काम किया है। क्या मेरी कमजोरियां थी और क्या मेरी शक्तियां थी?

आज उनके 89 जन्मदिन पर एक नजर डालते हैं उन 10 वर्षों पर, जिसमें आर्थिक मंदी के बावजूद भारत ने नए आयाम छुए।

क्या मनमोहन थे कमजोर प्रधानमंत्री..??

एक प्रधानमंत्री का रुतबा उसके फैसलों से मापा जा सकता है। मनमोहन सिंह को हमेशा ही विपक्षी दल एक कमजोर और कुछ ना बोलने वाले प्रधानमंत्री में जनता के सामने पेश करते हैं।
पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के फैसले कुछ और ही बयां करते हैं। अपने पहले कार्यकाल में 141 सांसदों के साथ कांग्रेस ने गठबंधन की सरकार बनाई थी। जिसे वाम मोर्चे का समर्थन हासिल था। ये किसी से छिपा नहीं है कि वाम दलों की अमरीका के प्रति विदेश नीति क्या है?

पर मनमोहन जानते थे कि देश का हित नुक्लेयर ऐनर्जी में है और अमेरिका के साथ अच्छे सम्बधों में है। वामदलों के बदौलत सरकार चल रही थी पर इसकी परवाह ना करते हुए मनमोहन ने 123 डील फाइनल की और भारत के अमेरिका के साथ सम्बधों की नींव रखी। आज QUAD में भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर ग्लोबल पॉलिटिक्स को बदल रहा है। क्या इन रिश्तों की नींव एक कमजोर प्रधानमंत्री रख सकता था।

क्या मनमोहन मूक प्रधानमंत्री थे..?

प्रधानमंत्री सरकार का सबसे बड़ा प्रवक्ता होता है। उसका काम अपनी पार्टी के लिए रैलियां करने से अधिक जनता और मीडिया के सामने आकर समावेशी मुद्दों पर सरकार की प्रतिक्रिया देना होता है। चुनावों के समय तो भारत के सभी प्रधानमंत्रियों ने अपने मन-पसंदीदा पत्रकारों को इंटरव्यू दिए हैं। पर मनमोहन एक ऐसे प्रधानमंत्री थे जो हर विदेश दौरे के बाद पत्रकार वार्ताओं को ना सिर्फ सम्बोधित करते थे पर तीखे प्रश्नों का शांति से जवाब भी देते थे। उन्होंने ने अपने कार्यकाल में कितनी ही प्रेस वार्तें की हैं। इन प्रेस वार्ताओं की क्लिपिंग आज भी यूट्यूब (YouTube) पर मिल जाएंगी। मनमोहन खुद भी कह चुके हैं कि उन्हें सवालों से कभी डर नहीं लगा।

क्या मनमोहन सरकार जनहित में नहीं थी…

मनमोहन सरकार को जन-विरोधी और भ्रष्ट होने के आरोपों के बीच 2014 के चुनावों में उतरना पड़ा था। पर जब कच्चे तेल की कीमतें 123 डॉलर थी, देश में पेट्रोल की कीमत 78 रुपए से अधिक कभी नहीं हुई। मनेरगा से लेकर शिक्षा का अधिकार और खाने का अधिकार सभी मनमोहन सरकार के समय में ही आए। और तो और भ्रष्टाचार से लड़ने का हथियार सूचना का अधिकार भी मनमोहन सरकार की ही देन है।

फिलवक़्त के लिए सिर्फ इतना ही कहना है कि ‘मनमोहन सिंह सशक्त प्रधानमंत्री थे या नहीं, ये तो इतिहास की कसौटी पर आगे और ज्यादा मूल्यांकन किया जाएगा।