कोरोना महामारी के दौरान अरबों-करोड़ों का धन एकत्रित करने वाले PM केयर फंड को लेकर नई ख़बर सामने आई। आपतकाल स्थिति में लोगों की मदद के लिए बनाए गए इस फंड को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में केंद्र सरकार की ओर से जवाब दिया गया। सरकार का कहना है कि ये फंड भारत सरकार से नहीं बल्कि चैरिटेबल ट्रस्ट से जुड़ा है। इस कोष में आने वाली राशि भारत सरकार क संचित निधि में नहीं जाती।
केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) ने अदालत में कहा कि, पीएम केयर्स फंड को न तो सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के दायरे में ‘पब्लिक अथॉरिटी’ के रूप में लाया जा सकता है, और न ही इसे ‘राज्य’ के रूप में सूचीबद्ध किया जा सकता है। कोष को लेकर प्रदीप श्रीवास्तव ने कोर्ट को बताया कि यह ट्रस्ट पूरी पारदर्शिता के साथ काम करता है और इसके फंड का ऑडिट एक ऑडिटर द्वारा किया जाता है। पीएम राहत कोष में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए इस ट्रस्ट को मिले धन और उसका सारा विवरण आधिकारिक वेबसाइट पर डाला जाता है।
उन्होंने याचिका के जवाब में कहा कि ट्रस्ट को जो भी दान मिले वो ऑनलाइन, चेक या फिर डिमांड ड्राफ्ट के जरिए मिले हैं। ट्रस्ट इस फंड के सभी खर्चों का ब्यौरा अपनी वेबसाइट पर अपडेट करता है। वहीं, अधिवक्ता सम्यक गंगवाल द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा मार्च 2020 में कोविड -19 महामारी के मद्देनजर देश के नागरिकों को सहायता प्रदान करने के एक बड़े उद्देश्य के लिए क्करू-ष्ट्रक्रश्वस् फंड का गठन किया गया था और इसे अधिक मात्रा में दान मिला।
आपको बता दें कि इस फंड को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में वकील सम्यक गंगवाल ने एक याचिका दायर की है जिसमें मांग की है कि PM केयर्स फंड को राज्य को घोषित किया जाए और पारदर्शिता बनाए रखने के लिए इसे RTI के अंडर लाया जाए।