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‘लीगल टेंडर नहीं है क्रिप्टो करेंसी’, तो सरकार ने क्यों लगाया टैक्स?

डेस्क |

वर्चुअल करेंसी यानी क्रिप्टो करेंसी में पैसा लगाने वालों के लिए एक और बुरी खबर है. सरकार ने ऐसे निवेशकों के अरमानों पर दोहरा आघात किया है. पहला इनके मुनाफे पर 30 फीसदी का टैक्स और दूसरा इसे लीगल टेंडर का दर्जा नहीं देना. मसलन, भले ही सरकार ने मुनाफे पर टैक्स लगाया है, लेकिन इसकी वैधता तय नहीं की है. यानी भारत में बिटक्वाइन, इथेरियम या कोई NFT अभी भी अवैध हैं.

मनीकंट्रोल नाम की बिजनेस वेबसाइट पर छपे एक खबर में यह तस्वीर खुद फाइनैंस सेक्रेटरी टीवी सोमनाथ ने साफ की है. 2 फरवरी के एक इंटरव्यू में सोमनाथ ने कहा, “Bitcoin, Ethereum या NFT को कभी भी लिगल टेंडर का दर्जा नहीं मिलेगा. क्रिप्टो एक ऐसी दौलत है जिसका वैल्यू दो लोगों के बीच तय किया जाता है. आप सोना, हीरा या क्रिप्टो खरीद सकते हैं. लेकिन, उसका वैल्यू सरकार के द्वारा तय नहीं किया जाएगा.”

यही नहीं देश के फाइनैंस सचिव ने एक और झटका दिया और कहा कि क्रिप्टो का रिस्क इसमें पैसा लगाने वालों का है. एक तरह से उनका कहना था कि पैसा डूबने की सूरत में भारत सरकार जिम्मेवार नहीं है. फाइनैंस सचिव ने मनीकंट्रोल वेबसाइट को बताया, “इसकी कोई गारंटी नहीं है कि आपका निवेश सफल हो पाएगा या नहीं.”

देश के वित्त सचिव के इस बयान के बाद साफ हो गया है कि सरकार क्रिप्टो वर्ल्ड को लेकर उत्तरदायी नहीं है और न ही इसे मान्यता दे रही है. लेकिन, सवाल ये उठता है कि जिस सिस्टम को सरकार ने मान्यता ही नहीं दी तो फिर उस पर टैक्स क्यों लगाया है? सरकार ने इस बजट में क्रिप्टो से मुनाफे पर 30 फीसदी का टैक्स लगाया है. दूसरी तरफ अगर सरकार भी वर्चुअल करेंसी लाने वाली है तो फिर निवेशकों को क्यों निराश किया जा रहा है? कन्फ्यूजन काफी है और सवाल कई हैं लेकिन जवाब देने के लिए न तो केंद्र सरकार के मंत्री तैयार हैं और न ही आला अफसर.