लोकसभा में शुक्रवार को गृह मंत्री अमित शाह ने जम्मू कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक सदन में पेश किया। इस प्रस्ताव में राज्य में राष्ट्रपति शासन 6 महीने के लिए बढ़ाने का प्रस्ताव है। शाह ने सदन में प्रस्ताव रखते हुए कहा मैं दो प्रस्ताव लेकर सदन में उपस्थित हुआ हूं। एक वहां जो राष्ट्रपति शासन चल रहा है, उसकी अवधि को बढ़ाने का है और दूसरा जम्मू कश्मीर के संविधान के सेक्शन 5 और 9 के तहत जो आरक्षण का प्रावधान है उसमें भी संशोधन करके कुछ और क्षेत्रों को जोड़ने का प्रावधान है।
अमित शाह ने कहा कि जब कोई दल राज्य में सरकार बनाने के लिए तैयार नहीं था, तो कश्मीर में राज्यपाल शासन लगाया गया था। राज्यपाल ने विधानसभा को भंग करने का फैसला लिया था। 9 दिसंबर 2018 को राज्यपाल शासन की अवधि खत्म हो गई थी और फिर धारा 356 का उपयोग करते हुए 20 दिसंबर से वहां राष्ट्रपति शासन लगाने का फैसला लिया गया था। 2 जुलाई को छह माह का अंतराल खत्म हो रहा है और इसलिए इस राष्ट्रपति शासन को बढ़ाया जाए क्योंकि वहां विधानसभा अस्तित्व में नहीं है।
अमित शाह ने लोकसभा में कहा कि चुनाव आयोग ने इस साल के आखिर में चुनाव कराने का फैसला किया है। गृह मंत्री ने कहा कि रमजान का पवित्र महीना था, अब अमरनाथ यात्रा होनी है। इस वजह से चुनाव कराने इस दौरान मुमकिन नहीं था। उन्होंने कहा कई दशकों से इस माह में चुनाव नहीं हुआ है सात बार राज्यपाल शासन लगे हैं और 2 बार राष्ट्रपति शासन लग चुके हैं।
गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि राज्यपाल और राष्ट्रपति शासन के दौरान जम्मू कश्मीर में एक साल की अवधि में पहली बार आतंकवाद के खिलाफ जीरो टोलरेंस की नीति अपनाई गई है। आतंकवाद की जड़ों को हिलाने के लिए इस सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। पहले वहां कई साल तक पंचायत चुनाव नहीं कराए जाते थे। लेकिन, यही एक साल के अंदर वहां शांतिपूर्ण पंचायत चुनाव कराए गए हैं। बीजेपी की सरकार ने वहां की पंचायतों को 3700 करोड़ पैसा देने का काम किया है। कानून व्यवस्था सरकार के नियंत्रण में है।