पी. चंद। केरल, देश मे ऊर्जा संकट पर बढ़ती चिंता के बीच, देश के अग्रणी अनुसंधान संस्थानों में से एक केरल तिरुवनंतपुरम के डॉ. सीए जयप्रकाश, प्रधान वैज्ञानिक, सीटीसीआरआई के टैपिओका के पत्तों से बिजली व गैस पैदा करके प्रायोगिक सफलता हासिल की है। संस्थान ने जैव कीटनाशकों पर काम शुरू किया। ये जैव कीटनाशक फसलों की पैदावार बढ़ाने के साथ मनुष्य जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों को भी कम करते हैं।
इतना ही नहीं उससे निकलने वाले वेस्ट पदार्थो से भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के तहत केंद्रीय कंद अनुसंधान संस्थान (सीटीसीआरआई), तिरुवनंतपुरम एक नया आविष्कार लेकर सामने आया है जो स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों के लिए भारत की पहल को नई गति प्रदान कर सकता है।
समाचार फर्स्ट की टीम से बात चीत में डॉ. सीए जयप्रकाश, प्रधान वैज्ञानिक, सीटीसीआरआई के नेतृत्व ने बताया कि उनकी टीम के प्रयासों ने परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा वित्त पोषित परियोजना के तहत फल दिया है। ‘टैपिओका के पत्तों से कीटनाशक अणुओं के यांत्रिक निष्कर्षण के बाद अपव्यय को मेथनोजेनेसिस के अधीन किया गया था। इसके बाद, अवांछित गैसों को हटाकर शुद्ध मीथेन को गैस परिसर से अलग कर दिया गया।’
उन्होंने कहा कि प्रति हेक्टेयर टैपिओका की फसल में लगभग 5 टन पत्ते और टहनियां बर्बाद हो जाती हैं। यह इस प्रयोग की सफलता से बिजली पैदा करने की क्षमता को दर्शाता है।
बिजली उत्पादन के साथ संस्थान फसलों के लिए जैव कीटनाशकों को भी बना रहा है। इसमें डॉ. जय प्रकाश का अहम रोल है। ये जैव कीटनाशक फसलों की गुणवत्ता के साथ साथ उत्पादन बढ़ाने में भी अहम परिणाम दे रहे है, लेकिन सबसे बड़ी समस्या ये है कि कीटनाशकों को बेचने वाला माफ़िया इस काम को आगे बढ़ने नहीं दे रहा है। सरकार यदि इसमें सख़्ती दिखाए तो निश्चित रूप से ये बड़ा काम है। बिजली के साथ साथ गैस का भी उत्पादन किया जा रहा है।