जम्मू-कश्मीर में लगातार आतंकियों को ढेर किया जा रहा है। सेना के इस काम से आतंकियों के आका बौखला गए हैं। दरअसल ऑपरेशन ऑल आउट के तहत सेना के जवानों ने एक-एक कर जैश के आतंकियों को मार गिराया है। देखा जाए तो एक तरह से सेना के जवानों ने जम्मू-कश्मीर में जैश-ए-मोहम्मद की कमर तोड़ दी है। जानकारों की मानें तो पुलवामा में हुए आतंकी हमले जैश-ए-मोहम्मद की बौखलाहट को दर्शाता है।
दरअसल, पुलवामा में आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने IED यानी (Improvised Explosive Device) ब्लास्ट के जरिये हमले को अंजाम दिया। देश में यह पहला IED हमला नहीं है। आतंकियों ने इससे पहले भी कई IED के जरिये हमले को अंजाम दिया है। दरअसल, आतंकी बड़े पैमाने पर नुकसान के लिए IED ब्लास्ट को अंजाम देता है। 2016 में पठानकोट एयरबेस में आतंकियों ने IED ब्लास्ट के जरिये ही वारदात को अंजाम दिया था, जिसमें बड़े पैमाने पर लोग घायल हुए थे।
कितना खतरनाक होता है IED ब्लास्ट?
IED भी एक तरह का बम ही होता है, लेकिन यह मिलिट्री के बमों से कुछ अलग होता है। आतंकी IED का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर नुकसान के लिए करता है। IED ब्लास्ट होते ही मौके पर अक्सर आग लग जाती है, क्योंकि इसमें घातक और आग लगाने वाले केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है। खासकर आतंकी सड़क के किनारे IED को लगाते हैं, ताकि इसके पांव पड़ते या गाड़ी का पहिया चढ़ते ब्लास्ट हो जाता है। IED ब्लास्ट में घुआं भी बड़ी तेजी से निकलता है।
IED को ट्रिगर करने के लिए आतंकी रिमोट कंट्रोल, इंफ्रारेड या मैग्नेटिक ट्रिगर्स, प्रेशर-सेंसिटिव बार्स या ट्रिप वायर जैसे तरीकों का इस्तेमाल करता है। कई बार इन्हें सड़क के किनारे तार की मदद से बिछाया जाता है। भारत में नक्सलियों द्वारा भी कई वारदातों को IED ब्लास्ट के द्वारा अंजाम दिया गया है।