सुप्रीम कोर्ट राफेल डील की कोर्ट की निगरानी में एसआईटी जांच की मांग वाली चार याचिकाओं पर शुक्रवार को अपना फैसला सुनाया। राफेल सौदे पर मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट में बड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने इस सौदे को लेकर सभी याचिकाएं खारिज कर दी हैं और कहा है कि इस सौदे को लेकर कोई शक नहीं है। कोर्ट इस मामले में अब कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहता। कोर्ट ने साथ में यह भी कहा है कि विमान खरीद प्रक्रिया पर भी कोई शक नहीं है। कोर्ट ने कहा है कि सरकार की बुद्धिमता पर जजमेंट लेकर नहीं बैठे हैं।
इस सौदे में कथित अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए सबसे पहले अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा ने जनहित याचिका दायर की थी। इसके बाद, एक अन्य अधिवक्ता विनीत ढांडा ने याचिका दायर कर शीर्ष अदालत की निगरानी में इस सौदे की जांच कराने का अनुरोध किया था। इस सौदे को लेकर आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह और इसके बाद 2 पूर्व मंत्रियों तथा भाजपा नेताओं यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी के साथ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने एक अलग याचिका दायर की।
इस याचिका में अनुरोध किया गया कि लड़ाकू विमानों की खरीद के सौदे में कथित अनियमितताओं के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो को प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया जाए। केंद्र सरकार ने फ्रांस से 36 लड़ाकू विमान खरीदने के सौदे का पुरजोर बचाव किया और इनकी कीमत से संबंधित विवरण सार्वजनिक करने की मांग का विरोध किया। भारत ने करीब 58,000 करोड़ रूपए की कीमत से 36 राफेल विमान खरीदने के लिये फ्रांस के साथ समझौता किया है ताकि भारतीय वायुसेना की मारक क्षमता में सुधार किया जा सके।
शीर्ष अदालत ने इन याचिकाओं पर सुनवाई पूरी करते हुए कहा था कि राफेल विमान की कीमतों के बारे में तभी चर्चा हो सकेगी जब वह फैसला कर लेगा कि क्या इन्हें सार्वजनिक किया जाना चाहिए। कोर्ट ने यह टिप्पणी उस वक्त की थी जब सरकार ने विमान सौदे की कीमतों के विवरण का सार्वजनिक रूप से खुलासा करने से इनकार करते हुये कहा था कि इससे देश के दुश्मनों को लाभ मिल सकता है। राफेल सौदे में कथित अपराधिता के मुद्दे और इसकी कोर्ट की निगरानी में जांच कराने की दलीलों पर शीर्ष अदालत ने दसाल्ट एविएशन द्वारा ऑफसेट साझेदार का चयन और फ्रांस के साथ अंतर-सरकार समझौते सहित अनेक मुद्दों पर सरकार से सवाल किए थे।