<p>डॉक्टरों के भारी विरोध के बीच नेशनल मेडिकल कमिशन बिल 2019 (NMC) को राज्यसभा से पास कर दिया गया है। इससे पहले 29 जुलाई को बिल लोकसभा से पास किया गया था। हालांकि देश के डॉक्टर्स और मेडिकल संगठन इस बिल का विरोध कर रहे हैं। इसके तहत Medical Council of India के स्थान पर नेशनल मेडिकल कमीशन का गठन होगा। अब तक मेडिकल शिक्षा, मेडिकल संस्थानों और डॉक्टरों के रजिस्ट्रेशन से संबंधित काम मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की जिम्मेदारी थी, लेकिन अब ये सारा काम नेशनल मेडिकल कमीशन करेगा।</p>
<p>केंद्र सरकार एक एडवाइजरी काउंसिल बनाएगी जो मेडिकल शिक्षा और ट्रेनिंग के बारे में राज्यों को अपनी समस्यां साथ ही सुझाव रखने का मौका देगी। इतना ही नहीं काउंसिल मेडिकल शिक्षा को किस तरह बेहतर बनाया जाए इसे लेकर भी सुझाव देगी। कानून के लागू होने के साथ ही पूरे देश के मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए सिर्फ एक ही परीक्षा होगी। जिसका नाम होगा शनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (NEET)। जैसे ही ये कानून मुख्यधारा में आएगा उसी के साथ मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया खत्म हो जाएगा। जिससे अधिकारियों कर्मचारियों की सेवाएं भी खत्म हो जाएंगी। हालांकि, उन्हें तीन महीने की सैलरी और भत्ते दिए जाएंगे। इसके बाद नेशनल मेडिकल कमीशन बनाया जाएगा। यहां बता दें कि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के अफसरों की नियुक्ति चुनाव के जरिए की जाती थी। लेकिन, मेडिकल कमीशन में सरकार द्वारा गठित एक कमेटी अधिकारियों का चयन करेगी।</p>
<p>बिल के तहत अब अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद भी डॉक्टरों को मेडिकल प्रैक्टिस करने के लिए टेस्ट देना होगा। वह यदि इस परीक्षा को पास करते हैं तभी उन्हें मैडिकल प्रैक्टिस करने के लिए लाइसेंस दिया जाएगा। इसी के आधार पर पोस्ट ग्रैजुएशन में एडमिशन किया जाएगा। इसपर डॉक्टरों का कहना है कि यदि कोई छात्र किसी वजह से एक बार एग्जिट परीक्षा नहीं दे पाया तो उसके पास दूसरा विकल्प नहीं है क्योंकि, इस बिल में दूसरी परीक्षा का विकल्प ही नहीं है।</p>
<p>नेशनल मेडिकल कमीशन ही तय करेगा की निजी मेडिकल संस्थानों की फीस कितनी होगी। हालांकि, वह ऐसा बस 40% सीटों के लिए ही करेगा। 50 फीसदी या उससे ज्यादा सीटों की फीस निजी संस्थान खुद तय कर सकते हैं। बिल के तहत एक ब्रिज कोर्स कराया जाएगा। जिसके बाद आयुर्वेद, होम्युपेथी डॉक्टर भी एलोपैथिक इलाद कर पाएंगे। आईएमए इसी का खुलकर विरोध कर रहा है। नेशनल मेडिकल कमीशन इस बात पर ध्यान देगा कि चिकित्सा शिक्षा में अंडर-ग्रैजुएट और पोस्ट-ग्रैजुएट दोनों स्तरों पर उच्च कोटि के डॉक्टर आएं। साथ ही मेडिकल प्रोफेशनल्स को इस बात के लिए भी प्रोत्साहित किया जाएगा की वह नए मैडिकल रिसर्च करें।</p>
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