इन दिनों प्लास्टिक का इस्तेमाल हर क्षेत्र में बढ़ा है। यह धरती और समंदर को प्रदूषित करने के साथ ही समुद्री जीवों और मानव स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर खतरा बन चुका है। अब तक इसका कोई ठोस विकल्प ढूंढा नहीं जा सका है। यही वजह है कि इस बार 5 जून यानी विश्व पर्यावरण दिवस 2018 को 'बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन' थीम पर मनाने का फैसला किया गया।
इसके जरिए सरकारों, उद्योगों, विभिन्न समुदायों और आम जनता से मिलकर प्लास्टिक से निपटने का अनुरोध किया जा रहा है जिससे विकल्प तलाश कर प्लास्टिक उत्पादन में कमी लाई जा सके। भारत इस बार विश्व पर्यावरण दिवस का ग्लोबल होस्ट भी है।
प्रगति की दौड़ में पर्यावरण ध्यान रखना भूले
पर्यावरण प्रदूषण एक विश्वव्यापी समस्या है। पेड़-पौधे, मानव, पशु-पक्षी सभी उसकी चपेट में है। कल कारखानों से निकलने वाला उत्सर्जन, पेड़ पौधों की कटाई, वायु, जल ध्वनि और प्लास्टिक प्रदूषण ने मानव जीवन के समक्ष संकट खड़ा कर दिया है। वहीं, औद्योगीकरण के कारण प्रदूषण की समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया है जिसके फलस्वरूप मानव जीवन दूभर हो गया है। हमने प्रगति की दौड़ में मिसाल कायम की है मगर पर्यावरण का कभी ध्यान नहीं रखा जिसके फलस्वरूप पेड़ पौधों से लेकर नदी तालाब और वायुमण्डल प्रदूषित हुआ है और मनुष्य का सांस लेना भी दुर्लभ हो गया है।
पूरी तरह से डिग्रेड होने में लग जाते हैं 1000 साल
प्लास्टिक के आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि हर साल दुनियाभर में 500 अरब प्लास्टिक बैग्स का इस्तेमाल होता है। बड़े पैमाने पर उत्पादन के कारण इसका निपटारा कर पाना गंभीर चुनौती है। दरअसल, प्लास्टिक न तो नष्ट होता है और न ही सड़ता है। आपको जानकर शायद हैरानी हो कि प्लास्टिक 500 से 700 साल बाद नष्ट होना शुरू होता है और पूरी तरह से डिग्रेड होने में उसे 1000 साल लग जाते हैं। इसका मतलब यह हुआ जितना भी प्लास्टिक का उत्पादन हुआ है वह अब तक नष्ट नहीं हुआ है।