<p>भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की तबीयत ठीक नहीं है। वाजपेयी काफी लंबे समय से दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती हैं। एम्स के मुताबिक, पिछले 24 घंटे में उनकी हालत काफी बिगड़ी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू समेत कई बड़े नेताओं ने एम्स पहुंचकर वाजपेयी का हाल जाना।</p>
<p>अटल बिहारी वाजपेयी एक सफल नेता होने के साथ ही एक कवि भी रहे। वे हमेशा अपने भाषणों में अपनी कविताएं सुनाया करते थे। उन्होंने कई कविताएं लिखीं और समय-दर-समय उन्हें संसद और दूसरे मंचों से पढ़ा भी। उनका कविता संग्रह 'मेरी इक्वावन कविताएं' उनके समर्थकों में खासा लोकप्रिय है। इस मौके पर पेश हैं, उनकी चुनिंदा कविताएं।</p>
<p><em><strong>ये हैं अटल की 4 कविताएं</strong></em></p>
<p><span style=”color:#c0392b”><strong>1. गीत नहीं गाता हूं</strong></span></p>
<p>बेनकाब चेहरे हैं,<br />
दाग बड़े गहरे हैं,<br />
टूटता तिलस्म, आज सच से भय खाता हूँ ।<br />
गीत नही गाता हूँ ।</p>
<p>लगी कुछ ऐसी नज़र,<br />
बिखरा शीशे सा शहर,<br />
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूँ ।<br />
गीत नहीं गाता हूँ ।</p>
<p>पीठ मे छुरी सा चाँद,<br />
राहु गया रेखा फाँद,<br />
मुक्ति के क्षणों में बार-बार बँध जाता हूँ ।<br />
गीत नहीं गाता हूँ ।</p>
<p><strong><span style=”color:#c0392b”>2. आओ फिर से दिया जलाएँ</span></strong></p>
<p>आओ फिर से दिया जलाएँ<br />
भरी दुपहरी में अंधियारा<br />
सूरज परछाई से हारा<br />
अंतरतम का नेह निचोड़ें-<br />
बुझी हुई बाती सुलगाएँ।<br />
आओ फिर से दिया जलाएँ</p>
<p>हम पड़ाव को समझे मंज़िल<br />
लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल<br />
वतर्मान के मोहजाल में-<br />
आने वाला कल न भुलाएँ।<br />
आओ फिर से दिया जलाएँ।</p>
<p>आहुति बाकी यज्ञ अधूरा<br />
अपनों के विघ्नों ने घेरा<br />
अंतिम जय का वज़्र बनाने-<br />
नव दधीचि हड्डियां गलाएँ।<br />
आओ फिर से दिया जलाएँ</p>
<p><br />
<strong><span style=”color:#c0392b”>3. ऊँचाई</span></strong></p>
<p> ऊँचे पहाड़ पर,<br />
पेड़ नहीं लगते,</p>
<p>पौधे नहीं उगते,<br />
न घास ही जमती है।</p>
<p>जमती है सिर्फ बर्फ,<br />
जो, कफ़न की तरह सफ़ेद और,<br />
मौत की तरह ठंडी होती है।<br />
खेलती, खिलखिलाती नदी,<br />
जिसका रूप धारण कर,<br />
अपने भाग्य पर बूंद-बूंद रोती है।</p>
<p>ऐसी ऊँचाई,<br />
जिसका परस<br />
पानी को पत्थर कर दे,<br />
ऐसी ऊँचाई<br />
जिसका दरस हीन भाव भर दे,<br />
अभिनंदन की अधिकारी है,<br />
आरोहियों के लिये आमंत्रण है,<br />
उस पर झंडे गाड़े जा सकते हैं,</p>
<p><br />
किन्तु कोई गौरैया,<br />
वहाँ नीड़ नहीं बना सकती,<br />
ना कोई थका-मांदा बटोही,<br />
उसकी छाँव में पलभर पलक ही झपका सकता है।</p>
<p>सच्चाई यह है कि<br />
केवल ऊँचाई ही काफ़ी नहीं होती,<br />
सबसे अलग-थलग,<br />
परिवेश से पृथक,<br />
अपनों से कटा-बँटा,<br />
शून्य में अकेला खड़ा होना,<br />
पहाड़ की महानता नहीं,<br />
मजबूरी है।<br />
ऊँचाई और गहराई में<br />
आकाश-पाताल की दूरी है।</p>
<p>जो जितना ऊँचा,<br />
उतना एकाकी होता है,<br />
हर भार को स्वयं ढोता है,<br />
चेहरे पर मुस्कानें चिपका,<br />
मन ही मन रोता है।</p>
<p>ज़रूरी यह है कि<br />
ऊँचाई के साथ विस्तार भी हो,<br />
जिससे मनुष्य,<br />
ठूँठ सा खड़ा न रहे,<br />
औरों से घुले-मिले,<br />
किसी को साथ ले,<br />
किसी के संग चले।</p>
<p>भीड़ में खो जाना,<br />
यादों में डूब जाना,<br />
स्वयं को भूल जाना,<br />
अस्तित्व को अर्थ,<br />
जीवन को सुगंध देता है।</p>
<p>धरती को बौनों की नहीं,<br />
ऊँचे कद के इंसानों की जरूरत है।<br />
इतने ऊँचे कि आसमान छू लें,<br />
नये नक्षत्रों में प्रतिभा की बीज बो लें,</p>
<p>किन्तु इतने ऊँचे भी नहीं,<br />
कि पाँव तले दूब ही न जमे,<br />
कोई काँटा न चुभे,<br />
कोई कली न खिले।</p>
<p><br />
न वसंत हो, न पतझड़,<br />
हो सिर्फ ऊँचाई का अंधड़,<br />
मात्र अकेलेपन का सन्नाटा।</p>
<p><br />
मेरे प्रभु!<br />
मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना,<br />
ग़ैरों को गले न लगा सकूँ,<br />
इतनी रुखाई कभी मत देना।</p>
<p><strong><span style=”color:#c0392b”>4. मौत से ठन गई</span></strong></p>
<p>ठन गई!<br />
मौत से ठन गई!</p>
<p>जूझने का मेरा इरादा न था,<br />
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,</p>
<p>रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,<br />
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।</p>
<p>मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,<br />
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।</p>
<p><br />
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,<br />
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?</p>
<p>तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ,<br />
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा।</p>
<p>मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र,<br />
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।</p>
<p>बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,<br />
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।</p>
<p>प्यार इतना परायों से मुझको मिला,<br />
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।</p>
<p>हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,<br />
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।</p>
<p>आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,<br />
नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है।</p>
<p>पार पाने का क़ायम मगर हौसला,<br />
देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई।</p>
<p>मौत से ठन गई।</p>
<p> </p>
<p> </p>
<p> </p>
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