एक तरफ जहां हिमाचल प्रदेश के निगमों की आए दिन खस्ता हालत की खबरें आती हैं, वहीं प्रदेश और केंद्र सरकार के साझा उपक्रम एसजेवीएन ने कुशलता के विदेश में जा कर झंडे गाड दिये हैं। एसजेवीएन ने 11 मई, 2018 में नेपाल के जटिल पहाडों से वहन वाली अरुण नदी में 900 मेगावॉट की विद्युत परियोजना को शुरु किया था। सुखवासभा और भोजपुर जिले में स्थित अरुण तीन परियोजना को पूरा करने का लक्ष्य 2025 का रखा गया था। पर कोरोना काल की प्रतिकुल स्थिति में भी हिमाचल का ये उपक्रम समय सीमा से दो साल पूर्व यानी 2023 में इस परियोजना को पूरा कर लेगा।
तिब्बत से निकलने वाली अरुण नदी पर पांच किलोमीटर तक पानी रोकने के लिए डेम बनाया जा रहा है। 11.8 km टनल पर 2700 लोग युद्धस्तर पर काम कर रहे हैं।
एसजेवीएन की ही पूर्ण स्वामित्व की सहायक कंपनी एसजेवीएन अरुण-3 पावर डेवलपमेंट कंपनी लिमिटेड (एसएपीडीसी) के द्वारा चलाई जा रही है। एसजेवीएन लिमिटेड को यह परियोजना भी नेपाल सरकार द्वारा अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धी बोली के माध्यम से 25 साल के लिये निर्माण स्वामित्व परिचालन और हस्तांतरण (बीओओटी) आधार पर आवंटित की गई है। इस समय सीमा में निर्माण के 5 साल शामिल नहीं है। इस परियोजना से नेपाल को कॉफी लाभ होने की उम्मीद क्योंकि 900 मे से 694 मेगावॉट बिजली भारत में बेची जाएगी।
आपको बता दे कि अरुण 3 परियोजना की आधारशिला भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली द्वारा संयुक्त रूप से काठमांडू में 11 मई, 2018 को रखी गई थी। लगभग 7,000 करोड़ रुपये की अरुण 3 एचईपी नेपाल में सबसे बड़ी परियोजना है और नेपाल में भारत द्वारा सबसे बड़ा निवेश भी है। इस परियोजना के चालू होने से दोनों पड़ोसियों के बीच मित्रता को बढ़ावा देने में काफी मदद मिलेगी और नेपाल के विकास को तेज करने और आर्थिक पुनरुद्धार में भी मदद मिलेगी। सामरिक दृष्टि से भी ये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि नेपाल में चीन अपनी ताकत बढ़ाने में लगा है। ये परियोजना नेपाल के लिए भारत की तरफ से एक सौगात होगा।