कई राज्यों के उपचुनाव में फीडबैक सही न आने पर बेशक़ केंद्र और कुछ राज्य सरकारों ने पेट्रोल-डीजल से टैक्स कम कर दिए, लेकिन रसोई गैस का सिलेंडर अब भी महंगा ही है। इसी बीच एक सर्वे में सामने आया है कि खास क्षेत्र में करीब 42 फीसदी लोगों ने गैस सिलिंडर का इस्तेमाल करना छोड़ दिया है और वे फिर से लकड़ी से खाना बनाने लगे हैं। ‘द टेलिग्राफ’ में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, झारग्राम और वेस्ट मिदनापुर के लगभग 100 दूरदराज के गावों में 42 फीसदी लोगों ने गैस सिलिंडर को उठाकर किनारे रख दिया है।
महामारी के दौरान वे गैस सिलिंडर का खर्च उठाने में सक्षम नहीं हैं। सर्वे के प्रमुख रहे प्रवत कुमार ने बताया कि उन्होंने झारग्राम और वेस्ट मिदनापुर के 13 ब्लॉक में 100 गांवों में 560 घरों का सर्वे किया। इसमें सामने आया कि लोग तेजी से गैस सिलेंडर पर खाना बनाना छोड़ रहे हैं। सर्वे के दौरान लोगों ने महंगाई को अहम मुद्दा बताया।
इसके साथ ही सर्वे में कहा गया है कि कुकिंग गैस के इस्तेमाल में कमी के तीन अहम कारण हैं। पहला है गैस की कीमतों मे वृद्धि, दूसरा है, उपलब्धता और तीसरा है लॉकडाउन के दौरान लोगों की आय में कमी। गैस का खर्च न वहन कर पाने की वजह से वे एक बार फिर जंगल की लकड़ी पर ही निर्भर हो रहे हैं। बहुत सारे लोगों ने गैस सिलेंडर को स्टोर रूम में रख दिया है।
वहीं मोदी सरकार का दावा है कि उज्ज्वला योजना के तहत लोगों को मुफ्त में गैस सिलेंडर दिए गए जिसके बाद गांव के लोगों की ज़िंदगी बदल गई है। इस योजना की शुरुआत साल 2016 में की गई थी। इसका उद्देश्य था कि ज्यादातर लोग क्लीन कुकिंग फ्यूल का इस्तेमाल करें और कई तरह की बीमारियों से उन्हें बचाया जा सके। भाजपा सरकार ने देश के 98 फीसदी लोगों को गैस सिलेंडर देने का प्रयास किया था। लेकिन बढ़ती महंगाई ने इन लोगों को सिलेंडर छोड़ने पर मजबूर कर दिया है।