सुभाष चंद्र बोस का उड़ीसा के कटक में आज ही के दिन 23 जनवरी 1897 में संपन्न बंगाली परिवार में जन्म हुआ था। बचपन उड़ीसा में बीता और प्रारंभिक पढ़ाई के बाद दर्शनशास्त्र में स्नातक के लिए उन्होंने कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया। देश को आजादी दिलाने के उनके लंबे सफर के बाद आज रहस्यों का अंतहीन सिलसिला कायम है। 2017 में केंद्र सरकार की ओर से भले ही उनकी मौत के कारणों को स्पष्ट कर दिया गया लेकिन ये फैसला उनके परिवार और उनसे जुड़े लोगों के मन और मस्तिष्क में दर्द के साथ कई सवाल भी छोड़ गया। 1919 में ब्रिटेन गए और चौथे स्थान के साथ आइसीएस परीक्षा पास की। विदेशी सरकार के अधीन काम नहीं करने की इच्छा के चलते 1921 में इस्तीफा देकर स्वदेश वापसी आए। उन्होंने पहले भारतीय सशस्त्र बल की स्थापना की थी जिसका नाम आजाद हिंद फौज रखा गया था। उनके 'तुम मुझे खून दो मैं, तुम्हें आजादी दूंगा' के नारे से भारतीयों के दिलों में देशभक्ति की भावना और बलवान होती थी। आज भी उनके इस नारे से सभी को प्रेरणा मिलती है।
आज हम जिस 71वें गणतंत्र का उत्सव मना रहे हैं, उसे अलंकृत करने, आकार देने और मजबूत करने में हमारे पूर्वजों ने अपनी शहादत दी। ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’, अपने इस वायदे के तहत देश को आजादी दिलाने वाले महानायक सुभाष चंद्र बोस उनमें से एक रहे हैं। आजादी के सिपाही का जीवन वैसे तो वीरता के किस्सों के साथ याद किया जाता है लेकिन संघर्ष के साथ जीवन रहस्यों के लिए तो नेताजी सुभाषचंद्र बोस का ही नाम आता है। और इस साल देश उनकी 123वीं जयंती मना रहा है।