केंद्र ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी कोविड-19 टीकाकरण दिशानिर्देशों में किसी व्यक्ति की सहमति के बिना उसका जबरन टीकाकरण कराने की बात नहीं की गई है. दिव्यांगजनों को टीकाकरण प्रमाणपत्र दिखाने से छूट देने के मामले पर केंद्र ने न्यायालय से कहा कि उसने ऐसी कोई मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) जारी नहीं की है, जो किसी मकसद के लिए टीकाकरण प्रमाणपत्र साथ रखने को अनिवार्य बनाती हो.
केंद्र ने गैर सरकारी संगठन एवारा फाउंडेशन की एक याचिका के जवाब में दायर अपने हलफनामे में यह बात कही है. याचिका में घर-घर जाकर प्राथमिकता के आधार पर दिव्यांगजनों का टीकाकरण किए जाने का अनुरोध किया गया है. हलफनामे में कहा गया है कि भारत सरकार तथा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी दिशानिर्देश संबंधित व्यक्ति की सहमति प्राप्त किए बिना जबरन टीकाकरण की बात नहीं कहते हैं.
वहीं केंद्र ने अदालत में स्वीकार किया है कि किसी भी व्यक्ति की मर्जी के बिना उसका टीकाकरण नहीं किया जा सकता है. गौरतलब है कि 16 जनवरी को कोरोना वायरस महामारी के खिलाफ वैक्सीनेशन का एक साल पूरा हो गया है. 16 जनवरी 2021 को देश में स्वास्थ्यकर्मियों और फ्रंटलाइन वर्कर्स को टीका लगाए जाने की शुरूआत हुई थी, उसके बाद से कोरोना टीके दिए जाने का सिलसिला जारी है.
अबतक देश में वैक्सीन की 156 करोड़ डोज़ लगाई जा चुकी हैं, लेकिन पूरी आबादी को टीका लगाने का लक्ष्य अब भी दूर है. एक साल पहले 138 करोड़ की आबादी को वैक्सीन दिया जाना आसान नहीं था. आज जब कोरोना की तीसरी लहर फैली हुई है, उसमें टीकाकरण गंभीर बीमारी को रोकने में बड़ी भूमिका निभा रहा है. बड़ी बात यह है कि देश में 8 फीसदी आबादी ऐसी है, जिसे अब तक एक भी टीका नहीं लगा. वहीं, 31 फीसदी आबादी ऐसी है, जिनको अब तक दोनों टीके नहीं लगे हैं.