देश के स्वतंत्रता-संग्राम में हिमाचल के स्वतंत्रता सेनानी कप्तान रामसिंह का योगदान स्वर्णाक्षरों में दर्ज है। कप्तान रामसिंह स्वतंत्रता सेनानी ही नही गीतकार और संगीतकार भी थे। कप्तान रामसिंह ने नेता जी सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिंद सेना में रहते हुए टैगोर द्वारा कृत जन-गण- मन की धुन बनाई थी।
पश्चिमी हिमालय की धौलाधार पर्वत श्रृंखलाओं की तलहटी में हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला के खनियारा गाँव में कैप्टन रामसिंह ठाकुर का जन्म 15 अगस्त,1914 को हुआ था। पिता हवलदार दलीपसिंह फ़ौज में थे इसलिये पिता से फ़ौज में जाने की प्रेरणा ली ।संगीत के संस्कार उन्हें अपने नाना से मिले थे। कप्तान रामसिंह मिडिल पास करने के बाद 1927 में सेकिंड गोरखा बिर्गेड बैंड में शामिल हो गए। 1941 में रामसिंह को कम्पनी हवलदार मेजर बना कर सिंगापुर और मलाया में जापानियों के विरुद्द लड़ाई के लिए भेज दिया गया ।
दिसम्बर,1941 में मलाया-थाईलैंड सीमा पर उन्हें 200 जवानों के साथ बंदी बना लिया गया। 15 फरवरी,1942 को जापान ने सिंगापुर पर कब्ज़ा कर लिया। नेता जी की आज़ाद हिंद फौज में सारे बंदी भारतीय फौजी शामिल हो गए। रामसिंह की प्रतिभा को देखते हुए नेता जी उन्हें राष्ट्रीय गान की धुन बनाने के लिए कहा। इस धुन को महात्मा गांधी ने भी सुना था। रामसिंह को नेता जी ने वायलन उपहार में देते हुए कहा था: रामसिंह! यह वायलन आज़ाद हिंदुस्तान में भी बजेगा ..
रामसिंह को उनके स्व रचित गीत कदम-कदम बढ़ाए जा.. खुशी के गीत गाये जा.. ये जिंदगी है कौम की तू कौम पर लुटाए जा.., ने अमर बना दिया । 15 अगस्त, 1947 की प्रातः राष्ट्र गान के लिये आमंत्रित किया गया था । उत्तरप्रदेश सरकार ने 1948 में उन्हें बैंड सहित PAC में शामिल कर लिया था । कप्तान रामसिंह का 15 अप्रैल,2002 को देहावसान हो गया ।