प्रदेश का सबसे बड़ा जिला कांगड़ा है। जहां सबसे ज्यादा 15 विधानसभा सीट है। सरकार कोई भी रही हो सत्ता तक पहुंचाने में इस जिला का बहुत बड़ा रोल रहता है। लेकिन अफ़सोस कांगड़ा जिला का दोनों ही दल अनदेखी करते रहे हैं। फ़िर चाहे मुख्यमंत्री की बात हो या पार्टी अध्यक्ष पद की कांगड़ा को तरज़ीह नही दी जा रही है। कांगड़ा ने विधानसभा में भाजपा को सबसे ज्यादा सीट दी। लोकसभा में रिकॉर्ड मतों से जीत दिलाई। धर्मशाला उपचुनाव में भाजपा का खुलकर समर्थन किया । बदले में कांगड़ा को मिला क्या सिर्फ आश्वासन?
पहले कांग्रेस पार्टी ने कांगड़ा को दरकिनार कर न अध्यक्ष कांगड़ा का बनाया न कोई ओधा कांगड़ा के नेताओं के पास है। ऐसा भी नहीं है कि कांगड़ा में कांग्रेस के बड़े चेहरे नहीं है, कांग्रेस में कई दिग्गज कांगड़ा से हैं। लेकिन अध्यक्ष मिला शिमला को। सबसे ज्यादा सीट भाजपा को देने वाले कांगड़ा को उम्मीद थी कि कम से कम अध्यक्ष तो कांगड़ा को मिलेगा लेकिन अध्यक्ष सिरमौर को दिया गया। सत्ता बनाने की चाबी तो कांगड़ा के पास है, लेकिन सत्ता में भागीदारी की बात हो तो कांगड़ा दरकिनार होता है।
किशन कपूर के लोकसभा जाने के बाद अभी एक मंत्री पद भी खाली चल रहा है। उधर सरवीण चौधरी को लेकर भी सियासी गलियारों में कई चर्चाएं है। विपिन परमार व विक्रम ठाकुर पर भी अपने ही निशाना साधते रहते है। राकेश पठानिया के मंत्री बनने का मामला भी लटका पड़ा है। रमेश धवाला की लड़ाई भी जगजाहिर है। ऐसे में कांगड़ा और कांगड़ा के नेताओं का भला कैसे होगा।