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नागरिकता संसोधन कानून पर वबाल क्यों, सरकार नहीं समझा पाई या देश की जनता नहीं समझ पा रही?

पी. चंद, शिमला |

नागरिकता संसोधन कानून की आग देश भर में फैल रही है। देश जल रहा है लेकिन न तो इस कानून को लेकर देश की जनता समझ पा रही है न ही सरकार इसको समझा पा रही है। इस कानून का विरोध इसलिए हो रहा हैं क्योंकि कुछ लोगों को लगता है कि इस कानून से उनकी नागरिकता खतरे में पड़ जाएगी। कुछ ये समझ रहे हैं कि जैसे असम में  राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) के चलते लाखों लोगों की नागरिकता खतरे में पड़ गई है, वैसा ही उनके साथ भी होगा।

वास्तव में नागरिकता कानून 2019 भारत के तीन पड़ोसी देशों से धार्मिक उत्पीड़न ही वजह से भारत आने वाले अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान करने के लिए है। पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश जैसे भारत के पड़ोसी देशों में सिख, जैन, हिंदू, बौद्ध, इसाई और पारसी अल्पसंख्यक हैं। ये तीनों देश मुस्लिम राष्ट्र हैं, इस वजह से उनमें धार्मिक अल्पसंख्यक को उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है। नागरिकता संशोधन कानून में ये  प्रावधान कर दिया गया है कि यदि इन तीन देशों के छह धर्म के लोग भारत में 31 दिसंबर 2014 तक आ चुके हैं तो उन्हें घुसपैठिया नहीं माना जाएगा। बल्कि उन्हें नागरिकता कानून के तहत भारत की नागरिकता दी जाएगी।

सीएए और एनआरसी कानून में भी अंतर हैः-

  • नागरिकता संशोधन कानून 2019 जहां धर्म पर आधारित है, वहीं राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है।
  • सीएए के तहत मुस्लिम बहुल आबादी वाले देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न के कारण भागकर भारत आए हिंदू, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध और पारसी धर्म के लोगों को भारत की नागरिकता प्रदान करने का इसमें प्रावधान है।
  • सीएए में मुस्लिम समुदाय को शामिल नहीं किया गया है।
  • एनआरसी में अवैध अप्रवासियों की पहचान करने की बात कही गई है, चाहे वे किसी भी जाति, वर्ग या धर्म के हों। ऐसे लोगों की पहचान कर उन्हें देश से बाहर भेजने का प्रावधान है।
  • एनआरसी फिलहाल सिर्फ असम में लागू है जबकि सीएए देशभर में लागू होगा।
  • सीएए भारतीय मुसलमानों को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचा सकता।