दो कृषि विधेयकों को लेकर देश भर में कोहराम मचा हुआ है। राजनीतिक नजरिए से देखा जाए तो पंजाब में इस बिल का सबसे ज्यादा विरोध हो रहा है। पंजाब में तो खुद भाजपा की सहयोगी पार्टी अकाली दल ने साथ छोड़ने की बात कह दी है। मंत्री तक ने इस्तीफ़ा दे दिया है। कांग्रेस इस बिल के विरोध में पूरी मजबूती से खड़ी है। कांग्रेस का आरोप है कि इस तरह से सरकार मंडी व्यवस्था खत्म कर के किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से वंचित करना चाहती है।
वहीं, किसानों और कांग्रेस के विरोध के चलते बीजेपी के मंत्री और नेता इस बिल को लेकर अब बचाव की मुद्रा में है। बिल को लेकर हिमाचल बीजेपी प्रवक्ता रणधीर शर्मा का कहना है कि यह कानून किसानों को अपना उत्पाद सीधे किसी को भी बेचने की छूट देगा। इससे ख़रीदारों में प्रतियोगिता बढ़ेगी, और किसानों को बेहतर दाम मिलेंगे। अब कानूनी रूप से मान्य बिचौलिये के न होने से किसान सीधे ग्राहकों को अपना उत्पाद बेच सकेंगे। एपीएमसी और न्यूनतम समर्थन मूल्य को जारी रखा जाएगा। कांग्रेस पार्टी किसानों को भ्रमित कर राजनीति लाभ लेना चाह रही है।
ऐसा भी नहीं है की देश भर में किसान इस बिल का विरोध कर रहे हैं, लेकिन हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में जहां पर गेहूं और चावल का रिकॉर्ड उत्पादन होता है वहां इसका असर पड़ेगा। खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग की रिपोर्ट के अनुसार पिछले सालों में पंजाब-हरियाणा का 80 फीसदी धान और करीब 70 फीसदी तक गेहूं सरकार ने खरीदा है।