जैसे-जैसे चुनाव करीब आ रहे हैं, बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही दलों में भीतरघात को लेकर चर्चा भी बढ़ती जा रही है। पच्छाद की बात करें तो यहाँ बीजेपी और कांग्रेस में सीधी टक्कर रहती तो कहीं न कहीं जातिय समीकरण महत्वपूर्ण भूमिका में रहेगा। लेकिन यहां मुक़ाबला त्रिकोणीय भी हो सकता है । दयाल प्यारी के चुनावी मैदान में डटे रहने से इसका नुकसान बीजेपी उम्मीदवार को हो सकता है।
जानकारी के मुताबिक जहां कांग्रेसी उमीदवार गंगू राम मुसाफिर अपना अंतिम चुनाव जैसा प्रचार करके लोगों की सहानुभूति हासिल करने का प्रयास कर रहें हैं। अगर उनका ये तरीका चल जाता है और वे अपने पूर्ण वोट को ही संगठित कर लेते हैं तो नतीजा कांग्रेस के लिए सुखद हो सकता है। वहीं आशीष के मैदान छोड़ने के बाद बीजेपी के पक्ष में हालात कुछ जरुर बने हैं। लेकिन ये काफी नहीं लग रहा । अब बीजेपी की पूरी निगाहें सीएम के दौरे पर टिकी हैं ।
वहीं, धर्मशाला में बीजेपी और कांग्रेस का प्रचार रफ़्तार जरूर पकडे हुए हैं । सभी बड़े चेहरे प्रचार में है। लेकिन यहां पर भी विशाल नेहरिया की जीत बीजेपी के भीतर ही बड़े गुट को कहीं न कहीं रास नहीं आयेगी । गुरुवार को महिला सम्मेलन में भी बीजेपी के एक नेता का अपने सम्बोधन में उमीदवार का नाम नहीं लेना चर्चा का विषय रहा। आज से मुख्यमंत्री 2 दिन के दौरे पर हैं तो ये सवाल है कि क् सीएम के दौरे के बाद आंतरिक राजनीति खत्म होगी । फिलहाल आज और कल तक बीजेपी जरूर धर्मशाला में मुख्यमंत्री के समाने संगठित नज़र आएगी।
यहां पर गद्दी फैक्टर भी अब बीजेपी को अधिक लाभ देता नज़र नहीं आ रहा है और एक बार फिर सवर्ण और obc को साथ लेकर चलने का प्रयास बीजेपी कर रही है और इसी लिए अब पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल को भी यहां चुनाव के लिए जिम्मेदारी सौंपी गई है। हालांकि बीजेपी का नारा जरुर है कि हम जाति का नहीं विकास की राजनीति करते हैं। इन सबके बीच आज़ाद उम्मीदवार राजेश चौधरी को लेकर ना सिर्फ जातीय समीकरण बल्कि लोकल फैक्टर भी बीजेपी से ज्यादा खड़ी नजर आ रही है।
वहीं, कांग्रेसी उम्मीदवार विजय इंदर करण भी धर्मशाला से ही ताल्लुक रखते है। कांग्रेस ने जीत के लिये पूरा जोर यहां लगाया हुआ है। प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप राठौर को भी हाई कमान के पास खुद को साबित करना है। लेकिन अगर कांगड़ा के ही बड़े चेहरे मैदान मैं नज़र नहीं आएंगे तो फिर मुक़ाबला यहाँ भी त्रिकोणीय बन सकता है।