हिमाचल उपचुनाव के नतीजों में बीजेपी को निराशा हाथ लगी है. 1 लोकसभा और 3 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में बीजेपी का खाता भी नहीं खुला और कांग्रेस इन चारों सीटों पर बाजी मार गई. अब बीजेपी के अंदर मंथन का दौर शुरू हो गया है. बताया जा रहा है कि हिमाचल सरकार और बीजेपी संगठन में बड़ा बदलाव हो सकता है. पार्टी आलाकमान इस टीम के साथ 2022 की जंग लड़ने के लिए मैदान में नहीं उतरेगा. जिसके लिए नई टीम बनाई जाएगी. नई टीम बनाने से कई बड़े पदाधिकारियों और मंत्रियों को हटाया भी जा सकता है.
आलाकमान बीजेपी के पदाधिकारियों की कार्यशैली से संतुष्ट नहीं है. बीजेपी अपना प्रदेश अध्यक्ष के साथ कई पदाधिकारियों को बदल सकती है. सरकार में भी कई मंत्रियों को इधर उधर किया जा सकता है. बीजेपी प्रभारी अविनाश राय खन्ना और संजय टंडन हार को लेकर मंथन कर रहे हैं. और पार्टी आलाकमान ने उनसे रिपोर्ट मांगी है. जिसके बाद बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सौदान सिंह शिमला आएंगे. सौदान सिंह बीजेपी की हार की समीक्षा करेंगे. पार्टी के नेताओं से फीडबैक लेंगे कि आखिर बीजेपी को एक भी सीट क्यों नहीं मिली. क्या कारण रहे बीजेपी की हार के इस पर भी चर्चा और मंथन होगा.
हिमाचल में बीजेपी को जुब्बल कोटखाई की सीट का भारी नुकसान झेलना पड़ा है. जुब्बल कोटखाई में बीजेपी के नेताओं की बगावत बीजेपी को ले डूबी. इसका असर चारों सीट पर पड़ा. लेकिन अब समीक्षा के बाद बीजेपी में भारी बदलाव किया जा सकता है क्यों कि अभी 2022 चुनाव भी है, जिनको एक साल है. इससे पहले बीजेपी अब कोई गलती नहीं दोहराना चाहेगी.
बीजेपी की शर्मनाक हार के पीछे मुख्यमंत्री एवं प्रदेशाध्यक्ष महंगाई और भीतरघात को बता रहे हैं. हार की समीक्षा कर कड़े कदम उठाने की बात भी कही जा रही है. बीजेपी के मंत्री और विधायक भी चुनाव प्रचार में लगे थे, वह भी अपने क्षेत्रों से विजयी लीड नही दिला सके.
माना इनकी भी बड़ी जिम्मेदारी है, लेकिन संगठन का क्या जो जून माह से ही उपचुनावों के लिए फील्ड सजा चुका था. सरकार के साथ बीजेपी को जितवाने की जिम्मेदारी संगठन महामंत्री पवन राणा, मंडी की बागड़ोर शिशु धर्मा को सौंपी गई थी. टिकट आवंटन में इनका बहुत बड़ा रोल रहा फ़िर भी भाजपा कैसे हार गई. इस पर भी सवाल उठ रहे हैं. जुब्बल कोटखाई के प्रभारी मंत्री सुरेश भारद्वाज, अर्की के प्रभारी डॉ. राजीव बिंदल और फतेहपुर के प्रभारी मंत्री राकेश पठानिया भी बीजेपी को बढ़त नही दिला पाई.
मंडी का जिम्मा मुख्यमंत्री के साथ -साथ मंत्री महेंद्र सिंह और गोविंद ठाकुर के पास था, लेकिन मंडी भी हार गई. यहां तक कि मनाली से गोविंद ठाकुर भी अपने उम्मीदवार को लीड नहीं दिलवा पाये. अब मंथन चिंतन सब होगा लेकिन गाज किस पर गिरेगी ये देखना होगा, अब सरकार से लेकर संगठन तक बड़ा बदलाव होने की सुगबुगाहट है?