जैसे जैसे उपचुनाव के मतदान का दिन करीब आ रहा है वैसे वैसे आरोप प्रत्यारोप का दौर भी तेज हो गया है। निशाना सिर्फ पार्टी या किसी नेता पर नहीं लग रहा है अब सीधा चुनाव आयोग पर भी सवाल उठने लगे हैं। हिमाचल कांग्रेस को डर सताने लगा है कि उपचुनाव में कहीं बूथ कैपचरिंग ना हो जाए? कांग्रेस ने इसको लेकर सीधे चुनाव आयोग को सवालों के कटघरे में खड़ा कर दिया है।
शिमला में प्रेस कॉन्फ्रेंस करने पहुंचे कांग्रेस के मीडिया विभागाध्यक्ष हर्षवर्धन चौहान ने चुनाव आयोग के अधिकारियों को बीजेपी का एजेंट करार दे दिया। उनका कहना है कांग्रेस ने 100 से ज्यादा शिकायतें की हैं लेकिन चुनाव आयोग उन पर संज्ञान तक नहीं लिया।
हर्षवर्धन चौहान ने कहा कि 80 साल से अधिक उम्र के बुजर्गों को बैलेट पेपर से वोट डालने की सुविधा दी गई है लेकिन इसमें कांग्रेस पार्टी के बीएलओ को साथ नहीं ले जाया जा रहा है। इसमें मतदाताओं को बीजेपी के लिए वोट करने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। इसकी शिकायत चुनाव आयोग को की गई है लेकिन आयोग निष्पक्ष रूप से काम नहीं कर पा रहा है।
अब सवाल ये है कि क्या वाकई चुनाव आयोग इमानदारी से अपना काम कर रहा है। ये सवाल इसलिए भी उठना लाजमी है क्यों कि पार्टियों की रैलियों में कोरोना नियमों की जमकर धज्जियां उड़ाई जा रही है। रैलियों और जनसभाओं में बिन मास्क के लोगों की भीड़ दिख रही है। आईसीएमआर पहले ही तीसरी लहर को लेकर हिमाचल को अलर्ट कर चुका है। उसके बावजूद यहां उपचुनाव में डराने वाली तस्वीरें देखने को मिल रही है। ऐसे में कहीं न कहीं चुनाव आयोग भी इस बात को लेकर गंभीर दिखाई नहीं दे रहा।
अगर कांग्रेस चुनाव आयोग की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर रही है। तो ऐसा क्या कारण है कि चुनाव आयोग उपचुनावों में कोविड नियमों का पालन नहीं करवा पा रहा है। सवाल ये है कि क्या वाकई में चुनाव आयोग इस सब बातों को नजरअंदाज कर रहा है? सवाल ये भी है कांग्रेस के आरोपों में आखिर कितना दम और सच्चाई है? इसका जवाब खुद चुनाव आयोग को जनता के सामने देना पड़ेगा।