हिमाचल के विधानसभा चुनाव से पहले सबकी निगाहें प्रमुख राजनीतिक दलों बीजेपी और कांग्रेस पर टिकी हुई थी कि वह कितनी महिलाओं को विधानसभा में अपना उम्मीदवार बनाती हैं। लेकिन, इस मर्तबा भी महिलाओं को टिकट देने में कांग्रेस और बीजेपी दोनों मुख्य दलों ने कंजूसी ही दिखाई है। पहले विश्व की सबसे बड़ी पार्टी कहलाने वाली बीजेपी की बात करें तो पार्टी ने 68 में से मात्र 6 सीटें ही महिलाओं के लिए दी है। बीजेपी ने इंदौरा से रीता धीमान, शाहपुर से सरवीण चौधरी, पालमपुर से इंदु गोस्वामी, भोरंज से कमलेश कुमारी, कसुम्पटी से विजया ज्योति सेन और रोहड़ू से शशिवाला पर दांव खेला है।
दूसरी तरफ कांग्रेस ने तो बीजेपी से भी आगे निकलते हुए महिलाओं को सिर्फ तीन ही टिकट दिए है। कांग्रेस ने डलहौज़ी से आशा कुमारी, देहरा से विप्लव ठाकुर और मंडी सदर से चंपा ठाकुर को टिकट दिया है। यानी कि जिस पार्टी की अध्यक्षा खुद महिला है उसने भी हिमाचल में महिलाओं को तरज़ीह नहीं दी है।
इतिहास पर नज़र डालें तो हिमाचल विधानसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम ही रहा है। प्रदेश के तीन जिलों कुल्लू, बिलासपुर और किन्नौर जिलों में आज तक कोई महिला विधायक नहीं चुनी गई है। प्रदेश विधानसभा में महिलाओं की भागीदारी 10 फीसदी भी नहीं रही है। इस बार भी ऐसा ही नज़र आ रहा है।
राज्य के चुनावी इतिहास पर नज़र दौड़ाई जाए तो साल 1998 में ही सबसे ज्यादा 6 महिलाएं चुनकर विधानसभा पहुंची थीं। उसके बाद वर्ष 2003 में वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में 5 महिलाओं ने जीत हासिल कर विधानसभा का दरवाजा देखा। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो बीजेपी और कांग्रेस ने एक दर्जन महिलाओं को चुनावी अखाड़े में उतारा, लेकिन 3 महिलाएं ही विधानसभा की चौखट तक पहुंच पाई हैं।
ठियोग से कांग्रेस पार्टी की विद्या स्टोक्स, डल्हौजी से कांग्रेस की ही आशा कुमारी और शाहपुर से बीजेपी की शरवीण चौधरी ही जीत पाईं थी। जबकि, कोई भी नया महिला का चेहरा विधानसभा नहीं पहुंच पाया। वर्तमान में विद्या स्टोक्स बागवानी मंत्री हैं। विधायक आशा और शरवीण भी पूर्व सरकारों में मंत्री रह चुकी हैं।