हिमाचल प्रदेश विधानसभा मॉनसून सत्र में HPTDC के 16 होटल लीज पर देने की का प्लान वेबसाइट पर डालने को लेकर सरकार की ख़ूब फ़ज़ीहत हुई। विपक्ष ने इसको मुद्दा बनाया ओर सरकार को जमकर घेरा। मुख्यमंत्री ने माना कि इसमें गलती हुई है। जिसकी गाज अकेले पर्यटन निगम का जिम्मा देख रहे रामसुभग सिंह पर गिरी। बाक़ी अधिकारियों पर जांच की आंच तक नहीं आई। अब मामला भी शांत है और विपक्ष भी शांत।
विपक्ष के हल्ले के बीच मुख्यमंत्री ने कांग्रेस को याद दिलाया कि 1990 में जब छराबड़ा स्थित वाइल्ड फ्लावर हॉल धरोहर भीषण अग्निकांड की भेंट चढ़ गया। राज्य सरकार चूंकि इस नामी होटल को चलाने की स्थिति में नहीं थी और सन् 1995 में समूह और प्रदेश सरकार के मध्य कमीशन के आधार पर एक इकरारनामा हुआ। इसके बाद साल 2002 में भाजपा सरकार ने इसे रद्द कर दिया। ओबराय समूह ने हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दी और अदालत ने इसे आर्बीट्रेटर को सौंप दिया लेकिन 2005 में मामला सरकार के पक्ष में ही गया लेकिन आज तक जस का तस है।
वाइल्ड फ्लावर हॉल पूर्व कांग्रेस सरकार ने ज्वाइंट वेंचर में बनाया था। तब जमीन की वैल्यू करीब सात करोड़ थी और प्रोजेक्ट भी 40 करोड़ का था। इसमें 20 करोड़ की इक्विटी राज्य सरकार की थी और इसी में सात करोड़ लैंड वैल्यू भी थी। इस तरह 35 फीसदी शेयर राज्य सरकार का होने के कारण कंपनी में चेयरमैन मुख्य सचिव थे, लेकिन कंपनी इसके बाद प्रोजेक्ट कॉस्ट बढ़ाती गई और लैंड की वैल्यू कभी नहीं बढ़ाई। राज्य सरकार का शेयर नहीं बढ़ाया, जबकि प्रोजेक्ट की लागत 100 करोड़ कर दी गई। इससे राज्य सरकार का शेयर 14 फीसदी रह गया।
ये कहानी हम इसलिए बता रहे हैं कि क्या सरकारें प्रदेश हित को ताक पर ऱखकर ऐसे निर्णय लेती हैं। जिसका फ़ायदा चंद लोगों को ही मिलता है। एक सरकार वाइल्ड फ्लॉवर को लीज़ पर देती है तो दूसरी 16 पर्यटन विभाग के होटलों को ही लीज़ पर देने की तैयारी कर देती है।