मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह सोमवार को दिल्ली पहुंचने वाले हैं। इस यात्रा के राजनीतिक मायने ख़ास चर्चा में बने हुए हैं। क्योंकि, मुख्यमंत्री का चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान और परोक्ष रूप से वर्तमान पीसीसी अध्यक्ष को हटाने की जिद इस यात्रा को काफी अहम बना रहे हैं। लेकिन, सवाल यह उठता है कि क्या राजनीतिक महत्वाकांक्ष से भरी यह यात्रा कोई गुल खिलाएंगी?
इस सवाल के पीछे बड़ी वजह यह है कि सोमवार को दिल्ली में ना तो राहुल गांधी हैं और ना ही प्रियंका। सबसे बड़ी बात कि सोनिया गांधी से भी उनकी मुलाकात तय नहीं हो पाई है। ऐसे में इस यात्रा के क्या मायने निकलेंगे इस पर राजनीतिक पंडितों की माथा-पच्ची जारी है। क्योंकि, वीरभद्र सिंह कोई अनाड़ी राजनीतिज्ञ नहीं है। ऐसे में उनकी यात्रा का कोई ना कोई ठोस मतलब तो जरूर होगा।
हालांकि, एक चर्चा यह भी है कि मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह दिल्ली में बैठकर आलाकमान पर दबाव बना सकते हैं। या फिर पार्टी में किसी दूसरे माध्यमों से अपनी बात को पुष्ट कराने की कोशिश कर सकते हैं। लेकिन, हाल में अगर वीरभद्र सिंह के प्रति आलाकमान की बॉडी-लैंग्वेज की तस्दीक करें तो मामला उनके हाथ से निकलता जान पड़ रहा है।
दरअसल, जैसे ही कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी पहली बार हिमाचल पहुंचे और पीसीसी अध्यक्ष के खिलाफ नारेबाजी कांड में जो कांग्रेस नेता नपे उससे इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि जिस तेवर के साथ मुख्यमंत्री पीसीसी अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू को टारगेट बना रहे थे, शिंदे की यात्रा के बाद उसमें भी नरमी दिखाई दी। जबकि, सुक्खू अपनी कार्यशैली पर उसी तरह कायम रहे जैसे वह पहले थे। सुशील कुमार शिंदे की यात्रा की पूरी समीक्षा करने के बाद यही लगता है कि आंदरूनी रण में वीरभद्र सिंह पिछड़ गए।
जाहिर है वीरभद्र सिंह आलाकमान से जो उम्मीदें कर रहे थे वैसा सहयोग उन्हें नहीं मिल पाया। यही वजह रही कि उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने तक का ऐलान कर दिया। आज भी जब वह दिल्ली जा रहे हैं, तब आलाकमान के साथ बैठक का कोई चांस नहीं बन पा रहा है।
हालांकि, दूसरी तरफ देखा जाए तो सीएम वीरभद्र ने अपने साथ अपने विश्वासपात्र विधायकों और मंत्रियों का समर्थन बनाए रखा है। यही वजह है कि कुछ मंत्री और विधायकों के उनके पक्ष में खड़ा रहने वाले बयान मीडिया में हेडलाइंस बने हैं। हिमाचल की राजनीति के जानकार उनके चुनाव नहीं लड़ने वाले बयान और विधायकों तथा मंत्रियों के समर्थन में खड़े होने की घटना को दबाव की राजनीति से जोड़ रहे हैं। क्योंकि, उनके दबाव के आगे एक बार कांग्रेस आलाकमान झुक चुका है। लिहाजा जानकार इसे उसी कड़ी से जोड़कर देख रहे हैं।
पिछले इतिहास को थोड़ा विराम देकर अगर हम वर्तमान के हालात की समीक्षा करें तो वीरभद्र सिंह और आलाकमान के बीच एक बड़ा गैप दिखाई दे रहा है। तालमेल के हिसाब से भी आलाकमान का सेंटिमेंट फिलवक्त में सुक्खू के पाले में ही जाता जान पड़ रहा है। हालांकि, यह राजनीति है और इसका ऊंट कोई भी करवट ले सकता है। मगर, वर्तमान के नजरिए से मुख्यमंत्री दिल्ली तो पहुंच रहे हैं, लेकिन असल दिल्ली उनसे काफी दूर होगी…।