<p style=”text-align:justify”>मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने चुनाव न लड़ने की बात कहकर हिमाचल की सियासत में उफान ला दिया है। दबाव की राजनीति करने में माहिर माने जाने वाले वीरभद्र सिंह का यह बयान उनकी चाल का हिस्सा माना जा रहा है। उन्होंने कांग्रेस कमेटी पर सहयोग न करने की बात कहकर एक बार फिर अपनी और सुक्खू की कलह को हवा दी है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सुखविंद्र सिंह सुक्खू हमेशा से वीरभद्र सिंह की आंख में चुभते रहे हैं और इनकी कलह से हर कोई वाकिफ़ है।</p>
<p style=”text-align:justify”>राजनीति के जानकारों का कहना है कि मुख्यमंत्री अब अंतिम दांव दबाव की राजनीति पर उतर आए हैं। वीरभद्र सिंह को कांग्रेस प्रभारी से सुशील कुमार शिंदे से कुछ उम्मीद थी, लेकिन शिंदे के रुख के बाद मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह अपनी फॉर्म में आ गए हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार वीरभद्र सिंह ने आलाकमान को सुक्खू को पद से हटाने के लिए दो दिन का अल्टीमेटम तक दे डाला है। इसमें कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मांग की गई है कि सुक्खू को पद से हटाया जाए और उन्हें आगामी चुनाव की कमान सौंपी जाए।</p>
<p style=”text-align:justify”><strong>2012 में भी इसी तरह बनाया था आलाकमान पर दबाव</strong></p>
<p style=”text-align:justify”>ऐसा पहली बार नहीं हुआ है वीरभद्र सिंह ने इस तरह से आलाकमान पर दबाव बनाया हो। इससे पहले भी वह दबाव की सियासत करते रहे हैं। उसकी सबसे बड़ी वजह है प्रदेश में उनका कद। गौरतलब है कि 2012 के चुनाव के पहले इसी तरह का दबाव बनाकर वीरभद्र सिंह ने कौल सिंह ठाकुर को प्रदेशाध्यक्ष पद से हटा दिया था।</p>
<p style=”text-align:justify”>एक बार फिर वीरभद्र सिंह अपना यही दांव दोहराने की जुगत में जुट गए हैं। अब गेंद आलाकमान के पाले में है, अब नतीजा क्या होगा आलाकमान के फैसले के बाद ही पता चलेगा। अब ऐसे में हिमाचल में कांग्रेस का मिशन रिपीट कैसे पूरा होगा ये देखने बात होगी।</p>
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