<p>कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह कहां से चुनाव लड़ेंगे इस पर अभी भी संशय बरकरार है। ठियोग और अर्की के बाद तो दूसरे विधानसभा क्षेत्रों से भी उनके चुनाव लड़ने की अटकलें तेज हो गई हैं। मगर, मुख्यमंत्री भी खुद तय नहीं कर पा रहे हैं कि वह चुनाव आखिर लड़ें तो कहां से लड़ें।</p>
<p>पहले मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने खुद ऐलान किया कि वे ठियोग से चुनाव लड़ने वाले हैं। लेकिन, फिर एक अंग्रेजी अख़बार के हवाले से ख़बर आई कि मुख्यमंत्री अर्की से चुनाव लड़ सकते हैं। इसके बाद मीडिया डोमेन में यह चर्चाआम हो गई कि सीएम अर्की से ही चुनाव लड़ने वाले हैं। लेकिन, यह ख़बर चर्चा में आते ही मुख्यमंत्री ने अपना पाला बदल लिया और ऐलान किया कि उन्हें ठियोग से ही चुनाव लड़ना है। </p>
<p><span style=”color:#c0392b”><strong>कहीं सीट गवांने का डर तो नहीं!</strong></span></p>
<p>राजनीतिक जानकार मुख्यमंत्री के इस पैंतरे की कई स्तर पर समीक्षा कर रहे हैं। वीरभद्र सिंह एक मझे हुए राजनेता हैं और प्रदेश की कमान 6 बार संभाल चुके हैं। ऐसे में चुनावी डगर पर कदम किस तरफ रखना है वह बाखूबी जानते हैं। यही वजह है के मिजाज को देखते हुए वह तय नहीं कर पा रहे हैं कि कहां से उनका दांव सही साबित हो सकता है।</p>
<p>ख़बर है कि ठियोग में सीएम के चुनाव के ऐलान के साथ ही वहां कांग्रेस का एक तबका बागी हो गया। इस तबके ने ऐलान कर दिया कि या तो मैडम स्टोक्स चुनाव लड़ें वर्ना वे अपना ताकत सीपीएम उम्मीदवार को जीताने में झोंक देंगे। जाहिर, इस बात की भी भनक मुख्यमंत्री को होगी ही। ऐसे में ठियोग भी उनके लिए रिस्क फैक्टर की तरह देखा जा रहा है। जबकि अर्की में भी स्थिति ज्यादा सही नहीं है।</p>
<p><span style=”color:#c0392b”><strong>पार्टी से ज्यादा खुद निशाने पर रहे हैं सीएम </strong></span></p>
<p>प्रदेश की नीतियां हो या खुद पर लगे व्यक्ति आरोप। विपक्षी पार्टी बीजेपी अक्सर कांग्रेस से ज्यादा विशेष तौर पर वीरभद्र सिंह पर ही निशाना साधती रही है। सभी रैलियों और सभाओं में बीजेपी के लिए एक ही कमजोर नब्ज है और वो हैं वीरभद्र सिंह। बीजेपी ने कांग्रेस पार्टी पर कम और मुख्यमंत्री पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को जोर -शोर से उठाया है।</p>
<p>चुनाव के दौरान भी बीजेपी के निशाने पर सिर्फ और सिर्फ मुख्यमंत्री ही हैं। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह भी विपक्ष के आरोपों का खुद ही डंटकर सामना करते रहे हैं। उन्होंने बीजेपी पर अक्सर विद्वेष की राजनीति का आरोप लगाया है। लेकिन, वह यह बात भलीभांति समझ रहे हैं कि इस चुनावी रण में उन्हें ज्यादा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।<strong> </strong></p>
<p><span style=”color:#c0392b”><strong>होशियार सिंह और गुड़िया मर्डर केस अहम कारण </strong></span></p>
<p>जिस तरह से गुड़िया मर्डर केस और होशियार सिंह मर्डर केस में प्रदेश सरकार का रवैया रहा। उसने जनता को आक्रोषित कर दिया। यहां भी मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ही निशाने पर रहे। ऊपरी हिमाचल में इन वारदातों का सबसे ज्यादा असर देखा गया। जनता के सड़क पर आने, पुलिस थाना फूंकने और विधानसभा पर पथराव की घटनाओं ने पूरे हिमाचल को हिला दिया। जनता सीएम के पूर्व में दिए बयानों से ज्यादा आहत दिखी। यही वजह है कि शिमला और इससे सटे जिलों में मुख्यमंत्री के खिलाफ युवाओं में एक किसम का आक्रोश भी है। इन तमाम मुद्दों से उपजे एंटी-इनकंबेंसी फैक्टर से सीएम वीरभद्र सिंह काफी हद तक वाक़िफ हैं। यही वजह है कि चुनाव के लिए अपनी सीट तय करने में उनको काफी माथापच्ची करनी पड़ रही है।</p>
<p>मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह अक्सर खुद को फक़ीर बताते रहे हैं। चुनावी सभाओं में भी उनके कर्यकर्ता 'राजा नहीं, फक़ीर है' के नारे लगाते रहे हैं। खुद कांग्रेस के उपाध्यक्ष ने मंडी की रैली में उन्हें फक़ीर शब्द से संबोधित किया। लेकिन, वर्तमान विधानसभा चुनाव में जो समीकरण उभर रहे हैं, उसमें फक़ीर की जागीर ख़तरे में दिखाई जान पड़ रही है।</p>
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