हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान से कांग्रेस को पहले ही तगड़ा झटका लगा है। कांग्रेस पहले ही राउंड में बीजेपी से पिछड़ गई है। क्योंकि, 9 नवंबर को होने वाले चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस तैयारी पूरी नहीं है। अभी तक कांग्रेस ने ना ही अपने उम्मीदवारों की लिस्ट फाइनल की है और ना ही चुनावी घोषणा-पत्र ही तैयार है। जबकि, बीजेपी ने अपने 50 कैंडिडेट के नाम फाइनल कर लिए हैं और उनका वीजन डाक्यूमेंट भी तैयार है।
चुनाव से ठीक पहले जहां बीजेपी के तमाम दिग्गज रैलियों और सभाओं को संबोधित कर चुके हैं, वहीं राहुल की मंडी रैली छोड़ किसी भी बड़े नेता की रैली कांग्रेस के खाते में नहीं है। कांग्रेस की रैली में जुटी भीड़ को लेकर भी कई कयास सामने आए, जिसे मीडिया ने बाखूबी दिखाया।
दरअसल, जब बीजेपी चुनाव की तैयारियों को लेकर रथ-यात्रा और बूथ-पालक कार्यकर्ताओं के सम्मेलन कर रही थी, उस दौरान कांग्रेस सरकार बनाम संगठन के झगड़ों में उलझी हुई थी। इसके अलावा पार्टी के भीतर नेताओं की गुटबाजी अलग ही चैलेंज की तरह रही और वह आज भी कायम है। ऐसा नहीं की बीजेपी के भीतर सिर-फुटौव्वल नहीं है। लेकिन, अपनी पार्टी ने आंदरूनी कलह को चुनावी मुहिम पर हावी नहीं होने दिया है। सीएम कैंडिडेट को लेकर बीजेपी में भी चैंलेज है। यही नहीं अनुराग ठाकुर का एम्स पर दिया गया बयान भी कहीं ना कहीं पार्टी में दो ध्रुवों के अस्तित्व को उजागर भी किया। लेकिन, इनके बयानों का असर पार्टी की गतिविधियों पर असर डालता हुआ दिखाई नहीं दिया।
वहीं, कांग्रेस में राहुल की रैली से पहले तक पीसीसी अध्यक्ष और मुख्यमंत्री एक दूसरे को बर्दाश्त करने के मूड में नहीं। वीरभद्र सिंह के हाथों नेतृत्व सौंपने के बाद पार्टी के भीतर ही बगावत सुलग रही है। लिहाजा, कई मोर्चों पर कांग्रेस चुनाव के पहले ही चरण में पिछड़ गई है। हालांकि, सूबे के मुखिया वीरभद्र सिंह ने दावा किया है कि कांग्रेस दोबारा सत्ता में वापसी कर रही है। उन्होंने तंज कसा है कि बीजेपी सिर्फ मोदी के भरोसे चुनाव लड़ रही है। जबकि, कांग्रेस अपनी ठोस रणनीति के तहत बीजेपी को पटखनी देने के लिए तैयार है।