<p>वीरभद्र सरकार के MLA और पूर्व MLA को ज़मीन दिए जाने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। विपक्ष ही नहीं बल्कि पार्टी के भीतर से भी इस फैसले के खिलाफ आवाज़ें उठ रही हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं से लेकर युवा नेताओं ने इस पर अपनी असहमति जाहिर की है। </p>
<p>इस कड़ी में कांग्रेस के ही नेता खुलकर बोल रहे हैं।प्रदेश कांग्रेस के पूर्व महासचिव कुलदीप राठौर, NSUI के राष्ट्रीय सचिव रहे युवा नेता सुरजीत भरमौरी तथा सीपीएस नीरज भारती ने कैबिनेट के फैसले का कड़ा विरोध किया है। </p>
<p>सुरजीत भरमौरी ने अपने फेसबुक पेज पर विधायकों को ज़मीन देने के फैसले को इंदिरा गांधी के सपनों से तुलना कर काफी लानत-मलानत की है। सुरजीत ने लिखा है, </p>
<p><span style=”color:#c0392b”><em>"इस निर्णय (कैबिनेट के फैसले) का मैं कड़ा विरोध करता हूं। जहां इंदिरा गांधी ने भूमिहीनों को ज़मीन देने का काम किया, वहीं आज कई नेताओं ने अपनी शक्ति का दुरूपयोग करके भूमिहीनों को मिली जमीन अपने और अपने परिवार के नाम की। अब ये माननीय, अपने और अपने परिवार के लिए ही सोच रहे हैं।"</em></span></p>
<p>इस पोस्ट में सुरजीत ने यह भी सनसनीख़ेज दावा किया है कि वे उन नेताओं को भी जानते हैं जिन्होंने गरीबों की जमीन छिनकर अपने या अपने परिवार के नाम करा ली। </p>
<p>सुरजीत कहीं ना कहीं कांग्रेस की राजनीति के मूल को बताना चाह रहे हैं। जब इंदिरा गांधी के नेतृत्व में पार्टी ग़रीबों का हमदर्द होने का दावा करती थी और गरीबी हटाओं के नारा दिया था। लेकिन, वर्तमान में कैबिनेट का यह फैसला कई उल्टे संकेतों को न्योता दे दिया है। बहरहाल, युवा नेता इस फैसले को पचा नहीं पा रहे हैं या फिर उन्हें ज़मीन पर जवाब देते नहीं बन पा रहा है। यही वजह है कि उनके विरोध के सुर लगाता कठोर होते जा रहे हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को कम से कम अपने युवा नेताओं के इस आक्रोश को समझना चाहिए, क्योंकि युवा नेता ही जमीन पर राजनीति को मुकम्मल कर पाते हैं।</p>
<p>गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश सरकार ने पिछले दिनों कैबिनेट की बैठक में विधायकों और पूर्व विधायकों को 5 बीघे जमीन देने का फैसला किया। इसको लेकर गलत तरीके से जमीन हथियाने का भी डिबेट छिड़ गया। सवाल उठने लगे कि शिमला में जिस स्तर पर सरकारी जमीनों पर कब्जा जमाने का जो मामला है, कहीं उस पर यह पर्दा डालने का खेल तो नहीं है। हालांक, दस मुंह दस बातें और 20 तर्क सामने आ रहे हैं। यही वजह है कि चुनावी महौल में ये नेता इसे एक ख़तरे की घंटी की तरह देख रहे हैं। </p>
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