हिमाचल में लोकसभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस के नेताओं में आंदरूनी हलचल काफी तेज़ है। यही वजह है कि प्रदेश प्रभारी रजनी पाटिल के दौरे के बाद कांगड़ा ज़िला के 7 कांग्रेसी नेता राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी से मिलने दिल्ली पहुंच गए। इनमें से 6 पूर्व और एक वर्तमान विधायक हैं। गुरुवार को हुई इस मीटिंग में इन नेताओं ने चुनाव संबंधी मामलों का ज़िक्र किया है।
राहुल गांधी के दरवाज़े पर सुधीर शर्मा, जगजीवन पाल, अजय महाजन, यादवेंद्र गोमा, संजय रतन, केवल सिंह पठानिया और पवन काजल ने तस्तक दी। इनमें से
जानकारी के मुताबिक इन नेताओं ने लोकसभा चुनाव को लेकर कांगड़ा-चंबा की राजनीति पर चर्चा की। मुलाकात का यह दौर राहुल गांधी के अलावा अशोक गहलोत के साथ भी चला है।
इन मुलाक़ातों के मायने क्या है?
सियासत के जानकार राहुल के साथ हुई इस बैठक को महज कांगड़ा-चंबा लोकसभा चुनाव की तैयारियों से जोड़कर नहीं, बल्कि इससे आगे की ओर देख रहे हैं। गौरतलब है कि पिछले महीने ही कांग्रेस की प्रभारी रजनी पाटिल राज्य के दौरे पर आईं और सभी ज़िलों में कार्यकर्ताओं के साथ संवाद स्थापित किए। इस दौरान कांगड़ा से जीएस बाली और मंडी से कौल सिंह ठाकुर का नाम लोकसभा चुनाव के लिए मंच से आगे किया गया। यह नाम और किसी ने नहीं बल्कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू ने आगे किया। अब माना जा रहा है कि कांगड़ा कि आपसी सिरफुट्टौवल वाली राजनीति यहीं से परवान चढ़नी शुरू हो गई।
क्योंकि, कांग्रेस की सियासत पर बारीकी से नज़र रखने वालों को पता होगा कि जीएस बाली और राहुल गांधी से मिले पूर्व कांग्रेसी विधायकों के बीच छत्तीस का आंकड़ा रहा है। पिछले दिनों बीड़ में हुए कार्यकर्ता सम्मेलन के दौरान डलहौजी से विधायक आशा कुमारी की मौजूदगी में एक धुरी बनाने की कवायद हुई थी और यहीं से लोकसभा चुनाव के नए समीकरण का स्क्रीप्ट तैयार किया गया। वैसे भी ये नेता पहले से वीरभद्र खेमे के एक मज़बूत सिपाही रहे हैं और दूसरी तरफ कांगड़ा से जीएस बाली का नाम प्रॉजेक्ट करने का काम पीसीसी अध्यक्ष सुक्खू ने किया था।
ऐसे में सुक्खू बनाम वीरभद्र की सियासी अदावतों से तो सभी वाक़िफ हैं। लिहाजा, अगर इन घटनाक्रमों के तार को आपस में जोड़ें तो राहुल गांधी के साथ मुलाक़ात आपसी महत्वाकांक्षाओं का परिणाम है।
इससे पहले अपने दौरे के दौरान प्रदेश प्रभारी रजनी पाटिल ने ग्राउंड जीरो की रिपोर्ट राहुल गांधी को सौंपने की बात कही थी। उनका नजरिया भी वीरभद्र गुट के प्रति थोड़ा सख़्त दिखाई दिया था। ऐसे में उनके रिपोर्ट से पहले आलाकमान पर गुट विशेष के दबाव बनाने की भी कोशिश हो सकती है। समाचार फर्स्ट ने रजनी पाटिल से भी संपर्क करने की कोशिश की है, फिलहाल उनसे संपर्क नहीं हो पा रहा है।
क्या फिर कांग्रेस गिरेगी औंधे मुंह?
हिमाचल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की दुर्गति सभी ने देखी है। कांग्रेस के अधिकांश मंत्री और नेता आपसी सिर-फुट्टौवल की भेंट चढ़ गए। उस दौरान भी मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का प्रेशर-ग्रुप लगातार सक्रिय रहा। बयानों और सियासी दांव का इस्तेमाल विरोधी पार्टी पर ना करके अपने ही प्रदेश अध्यक्ष और दूसरे नेताओं पर आजमाया गया। ऐसे में एक बार फिर से वही क़वायद लोकसभा चुनाव में भी सक्रिय होने लगी है। कांग्रेस का अंजाम क्या होगा, वह बाखूबी लगाया जा सकता है।
पिछले विधानसभा चुनाव में भी गुटबाजी ने अधिकांश मंत्रियों को हार का चेहरा दिखा दिया। फिलहाल, राहुल गांधी से जिन नेताओं ने मुलाकात की है…उनमें से भी 6 विधायकों को बड़े अंतर से विधानसभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ा।
विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने कांग्रेस की गुटबाजी का पूरा लाभ उठाया था। उस दौरान तो दूसरा पॉलिटिकल नैरेटिव भी खूब चर्चा का विषय बना था। जिसमें बीजेपी से कांग्रेस में शामिल नेता ही जैसे-तैसे चुनाव जीतने में सक्षम हुए थे। तत्कालीन परिदृश्य में उन नेताओं को बीजेपी और कांग्रेस दोनों का लाभ मिल गया था। हालांकि, जिस तरह से दोबारा गुटबाजी, मतभेद और महत्वाकांक्षाओं की स्क्रीप्ट तैयार हो रही है…उसमें बीजेपी के मलाई काटने की संभावना फिर से बढ़ गई है।