आशीष नड्डा।। हिमाचल बीजेपी में वर्तमान मॉडल को देखें तो हर नेता को कार्यकर्ता बना दिया गया है। नेतागिरी कहीं दिखाई ही नहीं दे रही है। पहले समर्थक नेता अपने लीडर के लिए कार्यक्रम करते थे, शक्ति प्रदर्शन करते थे। लेकिन, अब सभी सगठन द्वारा तय कार्यक्रमों के तहत ही चल रहे हैं। व्यक्तिवाद को उभारने का मौका किसी को नहीं मिल रहा न माहौल बन पा रहा है।
हालिया घटनाओं पर गौर करें तो मुख्यमंत्री की दिन प्रतिदिन गिरती साख और कांग्रेस की फूट से बीजेपी अपने अन्य राज्यों में आजमाए एजेंडे पर चलने के लिए प्रतिबद्ध दिखाई दे रही है। बाकी भाजपा कैसे भी लड़े मेरा व्यक्तिगत आकलन कांग्रेस को 10 – 15 के बीच हो पा रहा है । 10 से नीचे भी आये तो मुझे हैरानी नहीं होगी।
वर्तमान समय में बीजेपी की सबसे बड़ी सफलता का करण है नया यूथ है। जो हाल के वर्षों में वोटर बना है इसका मैक्सिमम फ्रैक्शन बिना पार्टी सदस्यता के भीबीजे के साथ दिखाई दे रहा है । इस वर्ग को लोकल नेता से मतलब हो या नही हो…लेकिन ये जमात पब्लिक प्लेटफॉर्म की बहस में बीजेपी की प्रवक्ता हो गई है और कांग्रेस से अभी वही यूथ बात कर रहा है जो पार्टी से जुड़ा है या उसका परिवार का कुछ पार्टी में लेना देना है ।
यह नया वोटर ही भाजपा को अपने एजेंडे पर चलने का बल दे रहा है। हिमाचल में भी सार्वजनिक प्लेफॉर्म पर ऐसे लाखों लोग बहस करते और राय रखते मिलेंगे जो आधिकारिक रूप से बीजेपी के किसी भी आंकड़ों का हिस्सा नहीं है परन्तु वो बहस में बीजेपी प्रवक्ता की तरह डटे हुए हैं। इन लोगों के दम पर बीजेपी अपने काडर से बाहर भी लंबे पंख पसार चुकी है। हिमाचल भी इससे अछूता अब नही दिख रहा है
हिमाचल में रथ यात्रा में घुमाया जा रहा मोदी का कट आउट किसी ख़ास रणनीति का ही हिस्सा लग रहा है। भाजपा कहीं न कहीं , हिमाचल में चेंज के संशय को भुनाने की तयारी में हैं।
अगला चुनाव कांग्रेस भाजपा न होकर इस प्रश्न पर जाता दिख रहा है कि अगला सीएम कौन होगा ? भाजपा के फेस नहीं देने से वीरभद्र सिंह की मुश्किलें भी बढ़ी हैं। कौन सा कद उनके सामने आये जिसे उन्हें अपनी लम्बी पारी के अनुभव से छोटा प्रूव करना है। राजनीति में आरोप का जबाब प्रत्यारोप से होता है और वीरभद्र सिंह इस फिल्ड में मास्टर हैं। परन्तु अभी वीरभद्र सिंह समझ नहीं पा रहे हैं किसे घेरे ?
वीरभद्र सिंह को आप ध्यान से सुनेंगे तो पाएंगे वो किसी ख़ास अजेंडे, रोडमैप या टारगेट की बात नहीं करते है या उनका कोई भी भाषण उठा लें उनका प्रचार प्रसार विरोधी की खामियां ढूंढने बताने और अपनी कूटनीति फैलाने में ही रहता है। जब सामने कुछ नहीं दिख रहा तो वो सुक्खू से उलझे पड़ते हैं। कूटनीति के ये राजा इस चुनाव के लिए नहीं उलझ रहे हैं इनकी नजर कहीं और है किसी दूर शाख पर है।
मुझे लगता है परिवर्तन चाह रहे वोटर और विपक्षी दल से भी वोटरों को रिझाने की यह बीजेपी की अब नीति है। बाकी जिन जिन लोगों की या पार्टी कर्यकर्ताओं का सेंटिमेंट और समर्थन अपने- अपने नेता में रहती है फलां व्यक्ति सत्ता में आएगा तो अच्छा होगा। जो होना स्वाभाविक भी है। उनके लिए भी चुनाव में सिर्फ काम करना और इसी उत्सुकता में रिजल्ट का इंतज़ार करना की कौन आएगा ही फिलहाल दिख रहा है।
इंटरनेट और सोशल मीडिया ने राज्य चुनावो को राष्ट्रीय बना दिया है अब राज्यो के मुद्दे चाहे गौण हो जाये पर राष्ट्रीय परिदृश्य की कोई भी घटना राज्यो में माहौल बना दे रही है। जो हालंकि एक राज्य की प्रगति के लिए घातक है।
(लेखक हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर से ताल्लुक रखते हैं। मौजूदा वक़्त में आईआईटी दिल्ली में रिसर्च स्कॉलर हैं और हिमाचल की राजनीति पर इनकी कलम चलती रहती है। यह लेख लेखक के फेसबुक से सभार लिया गया है।)