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कर्ज में डूबी प्रदेश सरकार टेक्निकल शिक्षा सुधार को मिल रही फंडिंग का नहीं कर पा रही इस्तेमाल: GS बाली

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पूर्व मंत्री जीएस बाली ने कहा कि तकनीकी शिक्षा गुणवत्ता सुधार कार्यक्रम (TEQIP-3) के तहत राज्यों को टेक्निकल (इंजीनियरिंग) संस्थानों में शिक्षा की क्वालिटी सुधारने के लिए फंडिंग बाहरी सोर्सेस से आ रही है । इस फंडिग के तहत शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने, लैब बनाने, सामान लेने, लैब के लिए नए नए इंस्ट्रूमेंट लेने, साफ्टवेयर लेने आदि का प्रावधान है । इसके अतिरिक्त स्टाफ की कमी होने पर TEQIP कुछ समय के लिए अपनी ओर से हाई क्वालीफाइड स्टाफ की भर्ती करता है। जिसकी सेलरी का खर्च प्रदेश सरकार नहीं बल्कि TEQIP को उठाना है ।

हिमाचल प्रदेश के संस्थानों को भी फंडिंग के लिए सिलेक्ट किया गया है । जिसके तहत इन संस्थानों को 2017 से 2020 तक करोड़ों रूपये फंडिंग में दिए गए । जो इस प्रकार है- 

जवाहर लाल नेहरू इंजीनियरिंग कॉलेज सुंदरनगर – 10 करोड़ 
राजीव गांधी इंजनियरिंग कॉलेज नगरोटा बगवां – 10 करोड़
अटल बिहारी वाजपेयी इंजनियरिंग कॉलेज प्रगति नगर शिमला – 10 करोड़
हिमाचल प्रदेश टेक्निकल यूनिवर्सिटी हमीरपुर – 20 करोड़ 

लेकिन हमारे हिमाचल सरकार और सिस्टम को इस फ्री फंडिंग की जरूरत महसूस नहीं हुई । न उन्हें यह लगा कि इस पैसे से क्या फायदा लिया जाए । समय पर फ्री में आई फंडिंग भी खर्च न हो पाई तो TEQIP में मिला फंड लैप्स किया गया और फंडिंग मे कटौती कर दी गई । 

इन संस्थानों में हुई फंडिंग की कटौती-

JNEC सुंदरनगर – 1 करोड़ कटौती
प्रगतिनगर कॉलेज – 2 करोड़ कटौती
HPTU  हमीरपुर – 4 करोड़ कटौती1 

पूर्व मंत्री ने कहा कि कुल 7 करोड़ फंड समय पर खर्च न कर पाने पर लैप्स हुआ । और बाकी जो बचा उसकी भी गारंटी नहीं है कि खर्च होगा भी या नहीं । या और कटौती होगी । सिर्फ नगरोटा इंजीनियरिंग कॉलेज ने पूरा पैसा खर्च किया और 1 करोड़ की अतिरिक्त फंडिंग बोनस में ली। लेकिन उस कॉलेज के प्रशासक को भी राजनीति में घसीटा गया और बाहर का रास्ता दिखा दिया गया । सबसे शिक्षित राज्यों में शुमार हिमाचल प्रदेश का TEQIP के तहत फंडिंग को प्रयोग करने में पूरे भारत में नीचे से तीसरा स्थान है । झारखंड बिहार भी हमारे राज्य से बेहतर काम कर रहे हैं । औऱ यहां शिखर की ओर हिमाचल के नारे चले हैं ।

TEQIP के तहत हाई क्वालिफाइएड स्टाफ जहां हर राज्य के संस्थानों में सेवाएं दे रहे हैं । हिमाचल सरकार द्वारा संस्थानों में उनकी जरूरत महसूस नहीं कि गई । कर्ज में डूबी सरकार के पास जब अपने बजट से कुछ खास संस्थानों को देने के लिए नहीं है तो कम से कम जो फ्री फंड बाहर से आ रहा है उसका प्रयोग तो छात्र हित में किया जाए। या उसकी जरूरत ही महसूस नहीं हो रही है ?

हिमाचल प्रदेश में कोई तकनीकी शिक्षा मंत्री है तो इस पर जवाबदेही दें । तकनीकी शिक्षा विभाग औऱ संस्थानों को राम भरोसे न चलाया जाए । छात्र हित में संस्थानों को मिले पैसे का लैप्स होना बहुत शर्मनाक है। मैं फिर कहता हूं सरकार और मंत्री पोस्टरों से बाहर आएं अफसरों के साथ बैठें विभागों की कार्य प्रणाली री व्यू करें। फ़ाइल खंगालें और पहले समझें कि कहां कहां से प्रदेश को बजट आता है और जमीन पर उसकी क्या स्थिति है । फंडिंग आने के धन्यवाद रूपी पोस्टरों से काम पूरा नहीं होता । कार्य तब पूरा होगा जब जमीन तक उसका क्रियान्वयन होगा । उपरोक्त लैप्स फंड की कौन जिम्मेदारी लेगा ?