कांग्रेस के तेज तर्रार नेता रहे जीएस बाली का सियासी सफर काफी लंबा रहा है. बाली 1990 से 1997 तक कांग्रेस के विचार मंच के संयोजक, सेवादल के अध्यक्ष, प्रदेश कांग्रेस कमेटी के संयुक्त सचिव जैसे पदों पर रहे. 1998 में पहली बार नगरोटा बगवां के विधायक बने। इसके बाद लगातार 2003, 2007 और 2012 में भी चुनाव जीते। 2003 और 2007 में वे मंत्री रहे.
बाली भले ही नगरोटा बगवां से चुनाव लड़ते थे, लेकिन उनकी राजनीति मजदूर कुटिया कांगड़ा से ही चलती थी. यही कारण है कि कांग्रेस पार्टी के दिग्गजों का मजदूर कुटिया में आना लगा रहता था. स्थानीय नेता हो या फिर दिल्ली आलाकमान के दिग्गज नेता, वे मजदूर कुटिया का रुख जरूर करते थे.
उन्होंने वीरभद्र सिंह सरकार में 6 मार्च 2003 को राज्य के परिवहन मंत्री के तौर पर भी जिम्मेदारी संभाली थी. जनवरी 2013 में दोबारा वे परिवहन मंत्री बने. वर्ष 2017 में वे नगरोटा बंगवा विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के अरुण कुमार से विधानसभा का चुनाव हार गए थे.
कांग्रेस के भीतर भी उनका यही रौब था. कांग्रेस के लिए वे सिर्फ एक विधायक या मंत्री नहीं, बल्कि भीड़ और संसाधन जुटाने वाले नेता थे. जीएस बाली ने मंत्री रहते तीन विभागों को संभाला. इसमें सबसे मुख्य विभाग था परिवहन विभाग. इसमें एचआरटीसी का बेड़ा बढ़ाने के साथ साथ नॉन स्टाप बस रूट जिला मुख्यालय से राज्य मुख्यालय के लिए उन्होंने शुरू किए.
उनके मंत्री रहते हुए जेएनएनयूआरएम के तहत 800 बसें आई थीं. बिजली वाली बसें सबसे पहले हिमाचल में लॉन्च हुई. पॉल्यूशन एमिशन को कंट्रोल करने के लिए ट्रांसपोर्ट पॉलिसी को बदला. 2004 और 2014 में इस पॉलिसी पर काम किया. दोनों बार जीएस बाली ही मंत्री थे. आज भी 2014 की ही पॉलिसी चल रही है. परिवहन नीति में 60:40 बस रूट फॉर्मूला लागू किया. पहले सिर्फ नेशनल हाइवे में परमिट थे, रूरल एरिया में कोई नहीं जाता था.
इंजीनियरिंग कॉलेज, फार्मेसी कॉलेज, दो आईटीआई, सब-डिवीजन, परिवहन डिपो, राष्ट्रीय उच्च मार्ग आदि कई स्थापनाएं नगरोटा बगवां के विकास में मील का पत्थर साबित हुई हैं.
जीएस बाली ने देश भर की बड़ी सियासी हस्तियों, ब्यूरोक्रेट के साथ औद्योगिक कारपोरेट घरानों के साथ अपने संबंध प्रगाढ़ किए. वहीं इस मुकाम तक पहुंचाने वाली नगरोटा बगवां की जनता को कभी नहीं भूले. तमाम व्यस्तताओं के बीच अपने विधानसभा क्षेत्र के लोगों के साथ अपने संपर्क को कभी नहीं टूटने दिया. क्षेत्र के लोगों को अपना परिवार बताना अकसर उनके भाषणों का हिस्सा रहा है.
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