Follow Us:

‘कबके बिछड़े हुए हम, आज कहां आके मिले…’

नवनीत बत्ता |

हिमाचल प्रदेश में राजनीति के बड़े चेहरों का नाम लें तो उसमें बीजेपी के शांता कुमार-प्रेम कुमार धूमल और कांग्रेस में वीरभद्र सिंह- पंडित सुख़राम का नाम आता है। इन राजनीति धुरंधरों में बेशक शांता कुमार और पंडित सुखराम रिटायर हो चुके हैं, लेकिन वीरभद्र सिंह और धूमल अभी भी राजनीति के बाहुबली हैं। पार्टी में इन सबका ऐसा नाम है कि किसी भी तरह राजनीति ख़ेल करने में ये अहम योगदान निभाते हैं। इसी बीच अब 2019 के लोकसभा चुनावों में भी इन नेताओं की भागीदारी अहम रहने वाले है…।।

यही वज़ह है कि आज की जो नई पीढ़ी चुनावी मैदान में नज़र आ रही है वे इन नेताओं का आशीर्वाद लेना नहीं भूलती। चाहे बीजेपी से मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर हों या फिर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप राठ़ौर ये अपने-अपने नेताओं के दर पर ज़रूर पहुंच रहे हैं। हाल ही में मुख्यमंत्री ने शांता से आशीर्वाद लिया था और अब वे धूमल भी आशीर्वाद लेने पहुंचे हैं। इस बात को दरकिनार नहीं किया जा सकता है कि धूमल की प्रदेश में अपनी टीम है जो आज भी उनके साथ ज़ुड़ी है। साथ ही एक कार्यकर्ता और विशेष जनाधार उनके पास है।

(आगे ख़बर के लिए विज्ञापन के नीचे स्क्रॉल करें…)

वहीं, दूसरी ओर चुनावों से पहले पंडित सुखराम और वीरभद्र सिंह का मिलान भी चर्चा का विषय बना हुआ है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इन दोनों में अग़र राजनीतिक सहयोग बैठता है तो मंडी और शिमला लोकसभा में बीजेपी के लिए बड़ी मुसीबत बन सकती है। यहां तक कि कांग्रेस अग़र जीत हासिल करती है तो इन नेताओं का बड़ा योगदान रहेगा। उधर, शांता कुमार भी रिजर्व नेता के रूप में जाने जाते हैं। जैसे कि उनका कुछ भी बोलना मीडिया से लेकर पार्टी के लिए काफी अहम रहता है।

अब ग़ौर करने वाली बात ये है कि बीजेपी के पास जहां शांता कुमार जैसे बेबाक नेता हैं तो कांग्रेस के पास वीरभद्र सिंह जैसे धुरंधर बैठे हैं जो अपने बयानों से सबके बोलती बंद कर सकते हैं। ऐसे में इन चार बड़े स्तभों को भूमिका पर दोनों ही दलों की भूमिका है और इनके प्रभाव को किस तरह से प्रयोग में लाना है। इसपर बीजेपी और कांग्रेस हाईकमान का मंथन भी जारी है। ख़ासतौर पर वीरभद्र सिंह औऱ धूमल पर पार्टी विशेष विचार कर रही हैं।