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कांग्रेस में नहीं ‘परिवारवाद पॉलिसी!’, ड्राइवर का बेटा दूध बेचते-बेचते बन गया नेता

नवनीत बत्ता |

हिमाचल प्रदेश में राजनीति का एक ऐसा दौर था, जब राजनेता नहीं बल्कि आम परिवारों से उठकर लोग राजनीति में आया करते थे। पार्टियों की दिन रात सेवा करने के बाद उन्हें बड़े औधे मिलते थे। लेकिन आज के दौर में ये राजनीति सिर्फ परिवारवाद औऱ परिवार का दौर बनकर रह गई है।

इसी बीच आज हम कांग्रेस के ऐसे नेता की बात करने जा रहे हैं, जो आम परिवार से उठकर पार्टी के उच्च औधे पर काबिज है। जी हां, वीरभद्र सिंह को लगातार भेदने वाले ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू एक ग़रीब परिवार से संबंध रखते हैं। ग़रीब परिवार में जन्म लेकर और मुश्किल से अपने गुजारा करने की जिंदगी शुरू करने के बाद भी पार्टी की सेवा नहीं छोड़ी। इसका ही ईनाम सुक्खू को आज मिल रहा और वे काफी लंब समय से प्रदेश बन रहे हैं।

सुक्खू ने सुनाई कहानी

सुक्खू ने समाचार फर्स्ट से अपने कुछ महत्वपूर्ण समय की चर्चा करते हुए बताया कि उन्होंने कभी सड़क किनारे दूध बेचते समय शायद कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि जिस पार्टी की मेरे दिलो दिमाग में विचारधारा है वह पार्टी मुझे इतना बड़ा मान सम्मान देगी। छात्र राजनीति से लेकर कांग्रेस की राजनीति तक लंबा संघर्ष पूर्ण समय उन्होंने निकाला है। इसमें दूसरे दलों के साथ-साथ ही कई बड़े नेता के दबाव बनाने से भी मैं पीछे नहीं हटा। आज का दिन उनके जीवन में महत्वपूर्ण इसलिए और अधिक हो जाता है, क्योंकि आज लगातार 6 साल उन्हें प्रधान बने हुए हो गए। यह अपने आप में ही मेरे लिए पार्टी हाईकमान और प्रदेश के बड़े नेताओं का आशीर्वाद और कार्यकर्ताओं का विश्वास भी कहा जा सकता है।

सुक्खू के जीवन के महत्वपूर्ण पहलू

ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू  का  जन्म 26 मार्च 1964 को नादौन विधानसभा में हुआ। एक गरीब परिवार से संबंध रखते हैं। इनके पिताजी ड्राइवर थे। राजनीति में इनकी शुरुआत कॉलेज के दिनों से हुई थी 1981-82 में सुक्खू कक्षा प्रतिनिधि चुने गए और 1983 में संजौली महाविद्यालय में जनरल सेक्रेट्री चुने गए। उसके बाद 1984 में संजौली महाविद्यालय में अध्यक्ष चुने गए। 1989 में एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष बने और 1995 में महासचिव युवा कांग्रेस बने।

1998 में अध्यक्ष प्रदेश युवा कांग्रेस बने। 1992-1997 में नगर निगम शिमला में दो बार पार्षद रहे और 2003 में पहली बार विधायक बने। दूसरी बार 2007 में 2012 का चुनाव नादौन विधानसभा क्षेत्र से हार गए उसके मात्र 18 दिन बाद ही सोनिया गांधी ने इन्हें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बना दिया। 2008 में प्रदेश कांग्रेस महासचिव बने। गरीब परिवार से संबंध रखने वाले सुखविंदर सिंह ने राजनीतिक क्षेत्र में एक ऊंचा मुकाम हासिल किया।

उन्होंने छोटा शिमला में पढ़ाई के दौरान दूध बेचा और अपना जेब खर्चा चलाया। जब यह 2012 में विधानसभा चुनाव हार गए और हिमाचल में कांग्रेस ने सरकार बनी तो उन्होंने ना ही कोई सरकारी पद लिया और न ही किसी कार्यक्रम में मुख्यतिथि बने। इस पर उन्होंने कहा था के नादौन की जनता ने उन्हें विपक्ष में बैठने का आदेश दिया है और इसे वह अपनी सर आंखों पर लेते हैं।

काफी सरल जिंदगी व्यतीत करते हैं सुक्खू

सुक्खू ने बताया कि उनका व्यक्तित्व बेहद सरल है और उनके सरल स्वभाव का किस्सा याद आता है। नादौन के कुछ कार्यकर्ता उनसे मिलने के लिए स्पेशल गाड़ियां करके शिमला पहुंचे  तो उन कार्यकर्ताओं के वहां पहुंचने पर यह गुस्सा हो गए। उन्होंने कहा कि काम वैसे भी हो जाना था गाड़ियों पर खर्चा करने की क्या जरूरत थी। आपके पास फोन है मुझे एक फोन कर देते। इनका यही सरल व्यक्तित्व इन की राजनीति की परिभाषा को बयान करता है।

कैसे हुए वीरभद्र सिंह से मतभेद!

वीरभद्र सिंह और सुखविंदर सिंह सुक्खू के किस्से काफी मशहूर है। उन्होंने बात करते हुए बताया कि वे हमेशा राजा वीरभद्र सिंह को पिता की तरह मान-सम्मान दिया है। लेकिन जब हिमाचल में ऊपरी और निचला हिमाचल चल रहा था तो उन्होंने 2003 में विधायक बनते ही मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से स्पष्ट तौर पर आपत्ति जताई। इस ऊपरी और निचला हिमाचली की खाई को दूर करने की कोशिश की। माना जाता है कि उसके बाद दोनों में खाई बन गई। अब फिर से नादौन के विधायक बने हैं तो नादौन की जनता के साथ सीधा संवाद रखा हुआ है। राजनीतिक विरोधी हमेशा उन्हें नीचे गिराने की साजिश रचते रहते हैं।