कांग्रेस विधायक एवं पूर्व प्रदेशाध्यक्ष ठाकुर सुखविंद्र सिंह सूक्खू ने कहा है कि भाजपा सरकार द्वारा लाए गए टीए-डीए बढ़ाने संबंधी विधेयक पर चाहते तो वह भी अपना मुंह बंद रख सकते थे, लेकिन विधायकों की वर्तमान और वास्तविक स्थिति पर बोलना जरूरी था। विधेयक पर चर्चा के दौरान मेरी भावना विधायकों की चुनौतियों को उठाने की रही, भत्ते बढ़ाना नहीं ताकि विधायक अपने कर्तव्यों और फर्ज को ईमानदारी से निभा सकें।
भाजपा सरकार के लाए गए विधेयक पर चर्चा इसलिए आवश्यक थी ताकि जनता को सच्चाई पता चल सके। एक विधायक को वेतन तो मात्र 55 हजार रुपये मिलता है, बाकी तो भत्ते मिलते हैं जोकि जनता का काम करने के लिए ही खर्च किए जाते हैं। विधायक का कार्यालय खर्च ही रोजाना का दो से ढाई हजार रुपये आ जाता है। लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि है, इसलिए उसे जानने का पूरा हक है कि उनके वोट से चुने हुए प्रतिनिधि को कौन-कौन सी सुविधाएं और कितना वेतन मिलता है। वेतन के अलावा मिलने वाले भत्ते कहां-कहां खर्च होते हैं। जनता अपना नुमाइंदा इसलिए ही चुनकर भेजती है कि वह सदन में सभी मुद्दों पर राय रखे। उन्होंने विधेयक पर जनता की जानकारी के लिए ही सदन में चर्चा की।
सरकार विधायकों को गाड़ी दे दे, ड्राइवर, पेट्रोल, ऑफिस और विधानसभा दौरे पर आने वाले सभी खर्च उठा ले तो विधायकों को कोई भत्ते देने की जरूरत नहीं पड़ेगी। वैसे भी अधिकतर विधायक यात्रा भत्ता क्लेम नहीं करते हैं। बीते साल मात्र 15 लाख रुपये यात्रा भत्ते पर सरकार के खर्च हुए। जो यात्रा भत्ता बढ़ाया गया है, उसका कोई लाभ विधायकों को होने वाला नहीं है। क्योंकि, यह हिमाचल की सीमाओं से बाहर मिलेगा।
जनता को यह बताना भी जरूरी था कि विधायकों को अपने वेतन से विधानसभा क्षेत्र में अनेक कार्यों के लिए पैसा खर्च करना पड़ता है। ऐसा पहली बार हुआ कि भत्तों में वृद्धि संबंधी विधेयक पर सदन में चर्चा हुई, उसके बाद विधेयक पारित हुआ। अभी तक यह विधेयक बिना चर्चा के ही पारित होते आए हैं। विधायक बोलने से कतराते रहते थे और जनता में उनकी छवि दागदार बनी रहती थी। वह यह भी बताना चाहते हैं कि यात्रा भत्ता ठीक वैसी ही सुविधा विधायकों के लिए है, जैसे कर्मचारियों को यात्रा करने पर एलटीसी मिलती है।
सूक्खू ने कहा कि प्रदेश में पूर्व वरिष्ठ मंत्री विद्या स्टोक्स ही एकमात्र नेता रहीं जो केवल एक रुपये वेतन लेती रहीं, वर्तमान में 68 विधायकों में ऐसा कोई नहीं, जो वेतन छोड़ रहा हो। इन सब बातों के मद्देनजर ही वह संकल्प लाए थे कि विधायकों को हर साल अपनी संपत्ति और देनदारियां सार्वजनिक करने के साथ ही आय के स्रोत भी बताने चाहिए। जिससे विधायकों की वास्तविक स्थिति जनता के सामने आ जाएगी।
सूक्खू ने कहा कि यूं ही कोई विधायक नहीं बन जाता। कड़ा संघर्ष करने के साथ ही लोगों का विश्वास जीतना पड़ता है। विधायक बनने के बाद उनका जीवन जनता को समर्पित होता है, तरह-तरह की बातें सुननी पड़ती हैं, बेबुनियाद आरोप भी लगाए जाते हैं। इसलिए ही वे विधायकों के पारदर्शी जीवन के हिमायती हैं। उन्होंने कहा कि वह एक बार फिर दोहराते हैं, विधायकों को अपनी संपत्ति और आय के स्रोत हर साल सार्वजनिक करने चाहिए। उनका जनता के प्रति जवाबदेह होना जरूरी है। विधायक नैतिकता का भी पालन करें। अगर उनका जीवन पारदर्शी होगा तो कोई उन पर उंगली नहीं उठा सकता।