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फिर गर्माया नेशनल हाइवेज़ का मुद्दा, कांग्रेस ने बीजेपी से मांगा जवाब

पी. चंद |

लोकसभा चुनावों के मद्देनज़र एक बार फिर प्रदेश में नेशनल हाइवेज़ का मुद्दा गर्माने लगा है। इस कड़ी में कांग्रेस ने शुक्रवार को बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा कि प्रदेश सरकार ने पिछले एक साल में हाइवेज़ के मुद्दे पर कोई प्रयास नहीं किया। पिछले एक साल कांग्रेस इसपर दबाव बना रही है, लेकिन जयराम सरकार कुंभकर्णी नींद से नहीं जाग रही। दिल्ली दरबार में मुख्यमंत्री के दौरे राज्य मार्गों को किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंचा पा रहे हैं।

CLP मुकेश  अग्निहोत्री, विधायक आशा कुमारी, विधायक हर्षवर्धन चौहान ने विकास कार्यों में लेट लतीफ़ी को गंभीर लेते हुए कहा कि प्रदेश में सड़कों के निर्माण के क़वायद दिल्ली में सही तरीके से नहीं हो रही। चुनावों के समय बीजेपी ने 70 नेशनल हाइवेज़ बनाने की घोषणा की थी, लेकिन मुख्यमंत्री के मौजूदा दौरे में 53 नेशनल हाइवेज़ की बात सामने आई। इससे जाहिर है कि 17 नेशनल हाइवेज़ पहले ही सरेंडर कर दिये गए।

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने 65 हजार करोड़ रुपये से भी अधिक राशि के 69 नेशनल हाइवेज की घोषणा की और बाद में एक और नेशनल हाइवेज बढ़ा दिया गया। मगर एक साल के बाद भी मसले सैद्धांतिक मंजूरी पर ही लटके हैं और सरकार ने खुद मान लिया है कि इनको कोई मंजूरी नहीं मिली है। तीनों नेताओं ने कहा कि यह जग-जाहिर हो गया है कि केंद्र सरकार ने नेशनल हाइवेज के मुद्दे पर हिमाचल से बहुत बड़ा फरेब और धोखा किया है।

इन नेताओं ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने धर्मशाला दौरे के दौरान जिन 9 हजार करोड़ रुपये के नेशनल हाइवेज की चर्चा की, सरकार बताए कि यह पैसा कहां है और यह राजमार्ग कहां बन रहे हैं? मुख्य मंत्री यह बताएं कि प्रधान मंत्री मोदी के हिमाचल दौरे के दौरान सेंट्रल यूनिवर्सिटी का शिलान्यास कार्यक्रम क्यों टाला गया, जबकि प्रधान मंत्री की सरकारी रैली के लिए शुरू से इसकी आड़ ली जा रही थी।

उन्होंने कहा कि सरकार हर हालत में सुनिश्चित करे कि सतलुज जल विद्युत निगम का किसी भी कीमत पर विलय एन.टी.पी.सी. में न हो पाए। अन्यथा हिमाचल के हितों से बहुत बड़ा खिलवाड़ होगा। क्योंकि सतलुज जल विद्युत निगम द्वारा नाथपा-झाखड़ी पन बिजली प्रोजेक्ट से 1500 मेगावाट और रामपुर प्रोजेक्ट से 400 मेगावाट बिजली दोहन की जा रही है और प्रदेश ने देश में विद्युत राज्य के रूप में अपनी साख कायम की है।

उन्होंने कहा कि मुख्य मंत्री बताए कि स्मार्ट सिटी का फंडिंग पैटर्न बदलाने में वह कामयाब हुए हैं या नहीं? इन नेताओं ने कहा कि मुख्यमंत्री के दिल्ली दौरे कोई सार्थक नतीजे नहीं ला पा रहे हैं। सरकार लगातार कर्जे ले रही है और एक साल के दौरान सरकार ने 3500 करोड़ रुपये के कर्जे लिए हैं।