पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार की आत्मकथा 'निजपथ का अविचल पंथी' ने भाजपा की राजनीति में सियासी हलचल मचा दी है। आत्मकथा में शांता कुमार ने केंद्रीय ग्रामीण विकास विभाग में हुए 300 करोड़ के घोटाले का खुलासे के बदले मिली इनामी सज़ा की पीड़ा जाहिर की। खुलासे के बाद उनका केंद्रीय मंत्री पद छिन गया जो उनकी ईमानदारी की सज़ा थी।
शांता ने आत्मकथा में यह बात मानी है कि 2003 में ग्रामीण विकास मंत्री रहे वेंकैया नायडू के मंत्रालय में 1300 करोड़ का घोटाला हुआ था। उन्होंने घोटाले को दबाने से मना किया तो बड़े नेताओं के दबाव में ग्रामीण विकास मंत्री पद छीन लिया। अक्सर यह कहा जाता था कि गुजरात दंगों को लेकर शांता ने इस्तीफा दिया था, लेकिन अब आत्मकथा में शांता ने इसका खुलासा किया है कि उन्होंने किस कारण इस्तीफा दिया था।
किताब में शांता लिखा है उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, आरएसएस, लालकृष्ण आडवाणी, संसदीय कार्य मंत्री रहे प्रमोद महाजन सहित किसी नेता ने उनका साथ नहीं दिया था। उस वक्त पार्टी छोड़ लोकसभा में प्रमाणों सहित इसका खुलासा करने का मन बनाया था, लेकिन पत्नी संतोष शैलजा ने उन्हें रोक लिया। पत्नी ने समझाया कि मैंने पूरा जीवन जिस पार्टी के लिए लंबा संघर्ष किया, उसे इतनी हानि होगी कि मैं खुद को क्षमा नहीं कर सकूंगा।