हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शान्ता कुमार ने जाति आधारित जनगणना की मांग पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि ये भारत का दुर्भाग्य है कि आज़ादी के 75 साल में प्रवेश करते हुए जाति आधारित जन गणना की मांग की जा रही है। नीतीष कुमार जैसे नेता भी इस मांग के लिए खड़े हो गये हैं। मुझे लगता है देश के गरीबों को हमेशा के लिए गरीब रखने का यह एक षड्यंत्र है।
ग्लोबल हंगर इन्डेक्स की रिपोर्ट के अनुसार 19 करोड़ लोग रात को भूखे पेट सोते है। एक अनुमान के अनुसार इनमें 12 करोड़ लोग आरक्षित जातियों के है। एक प्रश्न पैदा होता है कि लम्बे समय से आरक्षण के बाद भी यह 12 करोड़ लोग भुखमरी की हालत में क्यों जी रहे हैं? गरीबों की सहायता के लिए प्रदेश और देश की बहुत योजनाएं चलाई है। दिल्ली से सीधे पैसा पंचायतों में पहुंच रहा है। यह दुर्भाग्य है कि असली गरीबों की बहुत कम सहायता होती है।
पिछले दिनों सोशल मीडिया में बीपीएल में शामिल लोगों की बड़ी-बड़ी कोठियां दिखाई गई थी। ठीक यही हालत आरक्षण में हुई है। आरक्षित जातियों में ऊपर के प्रभावशाली नेता अधिकारी लाभ उठा रहे हैं। नीचे के गरीब को लाभ नहीं मिल रहा। इसीलिए आरक्षण के बाद भी 12 करोड़ गरीब लोग भुखमरी के कगार पर खड़े है। कुछ दिन के बाद भारत स्वतंत्रता के 75वें साल में प्रवेश करेगा। देश के प्रधानमंत्री लाल किले से तिरंगा लहरायेंगे और करोड़ो लोग अपने-अपने घरों पर तिरंगा लहरायेंगे। लेकिन यह याद रखें आजादी के इतने लम्बे समय के बाद भी 19 करोड़ लोग भुखमरी के कगार पर खड़े हैं।
योजनाओं से विकास हुआ है लेकिन सामाजिक न्याय नहीं हुआ। अमीर, अमीर हुआ और गरीब, गरीब हुआ। आज़ादी के 75वें वर्ष में देश को कोई ऐसा क्रान्तिकारी निर्णय करना चाहिए कि भारत के माथे से गरीबी का यह कलंक दूर हो।