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गुजरात दंगों के बाद अटल बिहारी वाजपेयी की राय पार्टी से अलग थी: शांता

मृत्युंजय पुरी |

पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार की आत्मकथा 'निज पथ का अविचल पंथी' में कई पुरानी अच्छी बुरी और कड़वी-मीठी यादे शेयर की। इसी बीच कई खुलासे भी सामने आ रहे हैं जो शांता कुमार ने अपने वक़्त में किये थे। कुछ कड़वे अनुभव को सांझा करते हुए शांता ने लिखा है कि गुजरात में दंगों के बाद अटल जी की राय पार्टी से अलग थी। उन्होंने राजधर्म की एक बार चर्चा की और फिर चुप हो गए। गोवा कार्यसमिति की बैठक से पहले मेरे सामने उन्होंने अरुण जेटली को क्या कहा था- मुझे आज भी याद है। लेकिन जब बैठक हुई तो वह चुप हो गए थे। अयोध्या मंदिर आंदोलन में भी वे सक्रिय नहीं रहे। उनके पार्टी के साथ मतभेद थे।

शांता ने किताब में लिखा है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष वेंकैया नायडू मुझसे नाराज थे, क्योंकि मैंने उनके प्रदेश को हर साल मिलने वाला 100 करोड़ रोक दिया था। मेरे खिलाफ अपनी ही पार्टी के हिमाचल और देश से कुछ नेता एकजुट हो गए। मुझ पर अनुशासनहीनता के आरोप लगाकर अटल जी पर मेरा इस्तीफा देने का दबाव बनाया गया। आखिरकार अटल जी ने मुझसे इस्तीफा ले लिया, लेकिन मैंने अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। कभी सार्वजनिक रूप से इस बारे में बात नहीं की थी। संघ पर से भी विश्वास हिल गया था। संघ ने भी सहायता नहीं की।

शांता कुमार ने लिखा है कि केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय 300 करोड़ के घोटाले की फाइल संसदीय कार्य मंत्री प्रमोद महाजन को भी दिखाई। उन्होंने मुझे बताया कि इस विभाग के उस चिंता छोड़ो और यह सब भूल जाओ। फिर मैंने फाइल प्रधानमंत्री को भी दिखाई। अटल जी हैरान होकर कहने लगे यह क्या हो रहा है। लालकृष्ण आडवाणी, योजना आयोग के अध्यक्ष केसी पंत को भी यह बात बताई। लेकिन किसी के पास कोई उत्तर नहीं था।