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कर्ज में डूबे प्रदेश की जनता के पैसौं से भरा जा रहा विधायकों-पूर्व विधायकों का इनकम टैक्‍स!

नवनीत बत्ता |

आम हो या खास सब अपनी जेब से आयकर चुकाते हैं। लेकिन क्या आपको मालूम कि पचास हजार करोड़ रुपये से भी अधिक कर्ज के बोझ तले डूबे हिमाचल प्रदेश में मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, मंत्री और  विधायक का आयकर सरकार जनता के पैसे से भर रही है। इस पर हर साल करीब चार करोड़ का बोझ खजाने पर पड़ता है। पूर्व विधायकों के करीब दो करोड़ रुपये के आयकर का भुगतान भी सरकार की ही जिम्मेदारी है।

माननीय का औसतन वेतन (भत्तों सहित) सवा दो लाख रुपये है जबकि मंत्रियों का इनसे पंद्रह से बीस हजार ज्यादा है। कुल 68 विधायकों का सालाना वेतन 15 करोड़ रुपये से अधिक बनता है। यात्रा भत्ता अलग से दिया जाता है, जो पहले ढाई लाख था। विधानसभा के इसी मानसून सत्र में इसे बढ़ाकर चार लाख रुपये तक किया गया है।

इनके अलावा अध्यक्ष को यात्रा के लिए 1800 रुपये प्रतिदिन का भत्ता मिलता है। कार की खरीद करने अथवा मकान बनाने के लिए 50 लाख रुपये तक एडवांस ले सकते हैं। इसका भुगतान वे 180 किस्तों में केवल चार फीसद ब्याज के साथ कर सकते हैं। विधायकों का बिजली और पानी का पांच हजार का बिल सरकार देती है। उन्हें 1800 रुपये दैनिक भत्ता मिलता है। विधायकों को सरकार रहने के लिए हॉस्टल की सुविधा देती है। इसकी एवज में उन्हें 1500 रुपये हर सेट का खर्चा देना होता है। वे भी कार खरीदने और मकान निर्माण के लिए 50 लाख रुपये एडवांस ले सकते हैं

हैरानी इस बात की है कि पूर्व विधायकों का आयकर भी सरकार ही भरती  है। लेकिन, आज तक जनता के हितैषी कहने वाले किसी भी सदस्य ने इस मुद्दे को विधानसभा में नहीं  उठाया की इनकम टैक्स हम सरकार को खुद अपने पैसों से देंगे ना कि लोगों के पैसों से।

बताते चलें कि प्रदेश सरकार में माननीयों का वेतन करीब सवा दो लाख रुपया भत्तों के साथ रहता है और जो मंत्री सरकार में हैं उनका माननीय से 20 हजार के करीब ज्यादा वेतन भत्ते रहते हैं।  लेकिन हैरानी इस बात की है कि भारी भरकम वेतन भत्तों के अलावा इन्हें 50 लाख रुपया एडवांस में सरकार की तरफ से कार या मकान बनाने के लिए दिया जाता है। जिस पर ब्याज सिर्फ 4 प्रतिशत बयाज होता है और 180 किस्तों में इसे भरना होता है। इसी तरह बिजली और पानी के लिए 5000 रूपये माननीय को हर महीने दिया जाता है।

घूमने फिरने के लिए जैसा कि सभी को पता ही है कि साढ़े 4 लाख का प्रावधान सरकार ने माननीयों के लिए कर दिया है। लेकिन, इतनी भारी-भरकम सुविधाएं सरकार की होने के बाद भी आयकर जो है वह लोगों की जेब से दिया जा रहा है। अपने आप में ही बहुत सी इन माननीयों की कार्यप्रणाली पर या यूं कहें कि नए और पुराने सरकारों के बीच में कोई बड़ा अंतर है ऐसा नहीं दर्शा रहा क्योंकि अपने लिए जब सुविधाओं की बात आती है तो सभी एकजुट है लेकिन आम आदमी के लिए सुविधाओं की बात आती है तो सदन का वॉयकोट स्वभाविक रूप से कर देंते हैं।