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नेता जी को खुद पर, अपने परिजनों पर या समर्थकों पर गुस्सा क्यों नहीं आता ?

डेस्क |

हिमचाल के एक नेता जी आजकल जनमंचों पर बहुत गुस्सा होते हैं । आप जनमंच में चले जाइए, कुछ भी कहिए, नेता जी आपकी बात को सिर माथे पर लेंगे और अधिकारियों की खाट खड़ी कर देंगे । भले आपने खुद अवैध कब्जा किया हो, भले आप खुद गांव के शरारती तत्व हों, भले ही आप गलत दावा कर रहे हों । मंच पर आपकी बात ही सुनी जाएगी, कोई सबूत नहीं मांगा जाएगा, अधिकारियों को अपना पक्ष नही रखने दिया जाएगा और उनकी सरेआम मंच पर परेड की जाएगी । क्योंकि ऐसी डांट पर ही जनता खुश होती है, सोचती है- ए हा जी ढंगा रा नेता ।

नेता जी का गुस्सा होना और उनका मंच पर भड़कना दिखाता है कि वे जनता के लिए कितने संवेदनशील हैं और नियम-कानून को तोड़ना उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं । मगर हैरानी की बात है कि हाल ही में जब उनके इलाके में उनकी जगह उनके सुपुत्र ने एक सड़क का शिलान्यास कर दिया तब उन्हें अपने इलाके के अधिकारियों पर या अपने बेटे पर गुस्सा नहीं आया। उनका बेटा जब मुख्य अतिथि बनकर जाता है तो भी उन्हें नियम टूटने पर गुस्सा नहीं आता । ऐसा क्यों ?

नेता जी को तब भी गुस्सा नहीं आया था जब खड्ड में आए सैलाब के कारण उनके इलाके में बने बस अड्डे को नुकसान पहुंचा  और बसें भी डूब गई थीं । उन्हें गुस्सा नहीं आया कि क्यों मैंने बिना जगह के ही यहां डिपो मंजूर करवाया और इस खड्ड पर ही इतना बड़ा स्ट्रक्चर बनवा दिया जो दोबारा कभी सामान्य सी बाढ़ में डूब सकता है और जनता के खून पसीने की कमाई से ली गई बसें और बनाई गई इमारत तबाह हो सकती है ।

हैरानी की बात यह है कि नेता जी को मनाली के उन अधिकारियों पर गुस्सा नहीं आया जिन्होंने यह नहीं देखा कि नेता जी के परिजन के होटेल में अवैध निर्माण हो गया है । एनजीटी को यह काम करना पड़ा और इस निर्माण को तोड़ने के आदेश देने पड़े । इतना ही नहीं  उनकी सरकार ने तो नियम ही बदल दिया और अवैध निर्माण रेग्युलर कर दिए ।

नियमों और कानून की अनदेखी पर सख्त रहने वाले नेता जी को क्यों अपने इलाके में खड्डों में हो रहा अवैध निर्माण नहीं दिखता ? क्यों इस निर्माण पर चुप रहने वाले अधिकारियों पर वह नहीं भड़कते? क्या इसलिए कि उनके करीबी रिश्तेदार औऱ ठेकेदार लाभान्वित होते हैं? हां, ठेकेदार दामाद के बिल पास न होने पर मंत्री जी को गुस्सा आता है तो पीडब्ल्यूडी का डिविज़न ही अपने यहां पहुंचवा देते हैं ।

इन आदर्शवादी मंत्री जो इस बात का गुस्सा नहीं आता कि बिना प्लैनिंग, बिना रिसर्च 400 करोड़ का मशरूम प्रॉजेक्ट कैसे इनके इलाके के लिए मंजूर हो जाता है । कैसे इनके इलाके में सैकड़ों आईपीएच की पाइपें सड़क किनारे पड़ी हैं ।
 
आखिर यह कैसा गुस्सा है जो मंच पर ही दिखता है, क्या ये दिखाने के लिए दिखता है । और हां, ये कभी  अपने करीबीयों पर क्यों नहीं दिखता ।