प्रशासनिक अधिकरण विधेयक विपक्ष के वॉकआउट के बावजूद भी पारित हो गया। राकेश सिंघा ने कहा सरकार प्रदेश से आर्थिक बोझ को कम करने के लिए ट्रिब्यूनल बन्द करने के बजाए मंत्रियों विधायको की सुख-सुविधाएं कम करनी चाहिए थी। लोकतंत्र के लिए ये सही नहीं है। यदि सरकार प्रदेश की आर्थिकी को बचाने की बात पर ट्रिब्यूनल बन्द कर रही है तो सरकार को मंत्रियों और विधायकों की सुविधाएं और वेतन भत्ते कम करें। इस फ़ैसले से न्यायालय पर बोझ पड़ेगा।
कांग्रेस विधायक सुखविंदर सुक्खू ने कहा कि भाजपा सरकार कर्मचारियों के प्रति असंवेदनशील है। पहले प्रेम कुमार धूमल ने मुख्यमंत्री रहते हुए 2012 में ट्रिब्यूनल को बन्द किया। उसके बाद कांग्रेस सरकार ने कर्मियों के हित में ट्रिब्यूनल को खोला लेकिन भाजपा सरकार ने एक बार फ़िर से इसको बन्द किया हे। सरकार कर्मचारियों के उत्पीड़न को बढ़ावा दे रही है, इसलिए कांग्रेस पार्टी इसका विरोध करती है। शिलाई के विधायक हर्षबर्धन ने बताया कि ट्रिब्यूनल में कुल 34000 मामले थे जिनमें से 23125 को डिस्पोज़ किया गया था। जबकि अभी भी 21000 मामले ट्रिब्यूनल में लंबित पड़े हैं।
मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने बताया कि देश मे कई राज्य ट्रिब्यूनल बन्द कर चुके हैं। साथ कि कई राज्य इसको खत्म करने की सोच रहे हैं। सरकार ने ट्रिब्यूनल को बंद करने का फ़ैसला सोच विचार करके ही लिया है। ट्रिब्यूनल में 21000 मामले लंबित पड़े हैं। सही मायने में ट्रिब्यूनल से कर्मियों को जल्द न्याय नहीं मिल रहा था। इसलिए ट्रिब्यूनल को बन्द करने का फैसला लिया गया। मुख्यमंत्री के जवाब से नाराज़ विपक्ष भड़क गया और नारेबाज़ी करते हुए सदन से वॉकआउट कर दिया।
इससे पहले हिमाचल प्रदेश प्रशासनिक अधिकरण विधेयक को भी सदन में लाया गया। ट्रिब्यूनल को बन्द करने के लिए सरकार पहले ही अध्यादेश ला चुकी है।