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मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर अपने ही नाराज़ नेताओं से किस तरह लड़ेंगे मुख्यमंत्री?

पी. चंद, शिमला |

हिमाचल प्रदेश में सारा का सारा मंत्रिमंडल फेरबदल कर दिया गया है। 3 नए मंत्रियों की ताजपोशी के बाद अब प्रदेश में मंत्रिमंडल पूरा हो गया है। इस मंत्रिमंडल को कुछ लोग संतुलित मंत्रिमंडल बता रहे हैं जिसमें क्षेत्रीय समीकरणों से लेकर जातीय समीकरणों को भी तरज़ीह दी गई है। हालांकि मंत्रिमंडल को राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की सूझबूझ का नतीजा बताया जा रहा है लेकिन मुख्यमंत्री के कुछ चेहते इसे मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की दूरदर्शी सोच बता रहे हैं।

मंत्रिमंडल में फेरबदल से महेंद्र सिंह ठाकुर, विक्रम ठाकुर, विरेंदर कंवर और डॉ राजीव सैजल के हाथ मजबूत किए गए हैं। जिसके मायने यही निकाले जा रहे हैं कि इन मंत्रियों की अढ़ाई साल तक बेहतर परफॉर्मेंस के आधार पर नए विभाग सौंपे गए है। लेकिन भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती रूठे हुए नेताओं को मनाने की होगी। ये रूठे हुए नेता अब सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं।
 
ज्वालामुखी के विधायक रमेश धवाला पहले ही अपने तल्ख तेवर दिखा चुके हैं। डॉ राजीव बिंदल को बिल्कुल साइडलाइन करना भी सरकार को महंगा पड़ सकता है। उधर भटियात चंबा के विधायक विक्रम जरियाल,नरेंद्र बरागटा भी मंत्रिमंडल विस्तार में जगह न मिलने को लेकर काफी नाराज चल रहे हैं। अंदर खाते इन लोगों की रणनीति क्या रहेगी इसके ऊपर सभी की नजर बनी हुई है। क्योंकि डॉक्टर बिंदर जैसे नेता चुप बैठने वालों में नहीं है जिनको भाजपा ने बिलकुल ही साइड लाइन कर दिया है।

ऐसे में आने वाले कुछ महीने भाजपा के लिए बड़ा उलटफेर कर सकते हैं। अब देखना यही होगा कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर किस तरह से तालमेल बिठाकर सरकार को आगे ले जाते है। क्योंकि मुख्यमंत्री को कोरोना से तो लड़ाई लड़नी ही है साथ विपक्ष के साथ सात नए मंत्रिमंडल और नाराज़ नेताओं से भी लड़ाई लड़नी हैं। क्योंकि ये लड़ाई ही 2022 मिशन रिपीट की दशा और दिशा तय करेगी।