मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर प्रस्ताव करेंगे कि ऐसे लोकतन्त्र प्रहरियों, जिन्हें 25 जून, 1975 से 21 मार्च, 1977 के आपातकाल के दौरान राजनैतिक और सामाजिक कारणों से आन्तरिक सुरक्षा अधिनियम, 1971 ( 1971 का 26 ) निरसित, भारत रक्षा नियम, 1971 ( निरसित ) और दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 के उपबन्धों के अधीन जेल या पुलिस थानों में निरूद्ध किया गया था, को सम्मान राशि, प्रसुविधाएं और उससे सम्बन्धित विषयों का उपबन्ध करने के लिए विधेयक पर विचार करने के बाद विधेयक को पारित कर दिया गया।
हालांकि विपक्ष की तरफ़ से सुखविंदर सुक्खू ने इस पर आपत्ति ज़ाहिर की ओर कहा कि इसको लोकतंत्र प्रहरी नाम देना गलत है। जिन लोगों ने आपातकाल में तोड़फोड़ की, बसें जलाई उनको लोकतंत्र प्रहरी कहना गलत है। इसकी परिभाषा ही गलत है। मुख्यमंत्री बताएं कि किस नियम के तहत ये कानून लाया है। एक पार्टी के कार्यकर्ताओं को लाभ पहुंचाने के लिए ये बिल लाया गया है। जिसमें कितनी राशि किसको देनी है इसका भी ज़िक्र नहीं है। इसलिए कानून बनाने से पहले इसे सेलेक्ट कमेटी में भेजा जाए। इसका नाम बदलने की ज़रूरत है। पत्रकारों और आरटीआई एक्टविस्ट को भी इसमें शामिल किया जाए। यदि ऐसा नहीं किया जायेगा तो विपक्ष के पास न्यायालय में जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचेगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि आपातकाल के दौरान बोलने की आज़ादी तक छीन ली गई। कई लोगों को जेल में डाल दिया गया। अन्य तीन राज्यों में ये कानून पास किया गया है। उस वक़्त आरटीआई एक्टिविस्ट नहीं थे हां जो पत्रकार उस वक़्त जेल में गए उनको भी उसमें शामिल किया जाएगा। लोकतंत्र के सम्मान में जो लोग 15 दिन जेल में रहे उनको 8 हज़ार और इससे ज़्यादा जेल में रहने वालों को 12 हज़ार प्रति माह देने का फ़ैसला लिया गया है। सिर्फ़ 81 लोग इसमें शामिल है। विपक्ष के विरोध के बाबजूद बिल को पारित कर दिया गया।