ऐसा लगता है कि माफियाराज से निजात दिलाने का वादा करने वाली हिमाचल की बीजेपी सरकार खुद ट्रांसपोर्ट माफियाओं के जाल में फंसती जा रही है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण HRTC बसों को यार्ड में खड़ा रखना है। HRTC की बसें एक अदद परमिट के लिए तरस रही हैं, वहीं प्राइवेट बसों को अवैध रूटों पर भी ग्रीन सिग्नल दिया जा रहा है।
एचआरटीसी के अंदर से ख़बर मिली है कि उनका रूट परमिट रिन्यू नहीं किया जा रहा। ख़ासकर यह बवाल सबसे ज्यादा कांगड़ा जिला में है। यहां पर रूट परमिट रिन्यू नहीं होने से ढेर सारी बसें यार्ड में खड़ी हो गई हैं। जबकि, बंद रूटों पर प्राइवेट बसों की बहाली जारी है।
अवैध संचालन पर होगी कार्रवाई, लेकिन कब?
समाचार फर्स्ट की टीम ने इस दौरान धर्मशाला, शिमला, हमीरपुर समेत तमाम जगहों से अधिकारियों और मंत्रियों से बात की। अधिकांश इस मुद्दे पर बात करने से कतराते रहे। ख़ासकर धर्मशाला आरटीओ की तरफ से कोई बात ही नहीं की गई। वहीं, मुख्यमंत्री से भी इस मामले में संपर्क नहीं हो पाया।
हालांकि, परिवहन मंत्री इस बाबत हमे दो बार अपना जवाब दे चुके हैं। उन्होंने यही कहा कि किसी भी सूरत में अवैध संचालन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और कार्रवाई होगी। (नीचे वीडियों में परिवहन मंत्री का बयान है)
लेकिन, सवाल है कि आखिर कार्रवाई कब होगी? जबकि, इस मामले में साक्ष्य चीख-चीखकर कह रहे हैं कि प्राइवेट बस ऑपरेटरों को रूट जारी करने में बड़े स्तर पर खेल हो रहा है। यहां तक कि कुछ रूटों पर मामले हाईकोर्ट में पेंडिंग हैं। जिनमें एचआरटीसी और प्राइवेट बस ऑपरेटर पार्टी हैं। बावजूद इसके इन रूटों पर भी प्राइवेट बस चालकों की दादागिरी चल रही है।
प्रेशर ग्रुप के आगे नतमस्तक सरकार!
जहां तक समाचार फर्स्ट को जानकारी हाथ लगी है, उसके मुताबिक कांगड़ा से एक समूह है जिसकी हैसियत सरकार में काफी है। इसी प्रेशर ग्रुप की वजह से सरकार इस मसले में हस्तक्षेप करने से कतरा रही है। एचआरटीसी के एक अधिकारी ने बताया कि इस ग्रुप की पहुंच काफी मज़बूत है और इनकी प्राइवेट बस चालकों के साथ काफी अच्छे संबंध हैं।
एचआरटीसी के एक कर्मचारी ने नाम नहीं बताने की शर्त पर धर्मशाला आरटीओ पर सीधा आरोप लगाया है। कर्मचारी का कहना है कि धर्मशाला आरटीओ ऊपरी दबाव के चलते हमारी बसों का परमिट रिन्यू नहीं कर रहे।
रूट परमिट देने में हो रहा है खेल
समाचार फर्स्ट को कुछ ठोस दस्तावेज हाथ लगे हैं। जिनको देख साफ-साफ लगता है कि एचआरटीसी की साख को दांव पर लगाया जा रहा है। प्राइवेट बस ऑपरेटरों को अवैध तरीके से रूट का संचालन दिया जा रहा है। लेकिन, सवाल ये है कि सरकार से जुड़ी एचआरटीसी से ऐसा सौतेला व्यवहार क्यों? प्राइवेट बस वाले इतने ख़ास क्यों?
सबसे बड़ी गंभीर बात ये है कि जिन वादों के साथ बीजेपी सत्ता में आई, अब सत्ता हासिल करने के बाद उन्हीं वादों से मुकरती हुई दिखाई दे रही है। समाचार फर्स्ट ने इससे पहले अवैध खनन को लेकर भी सवाल उठाए थे। लेकिन, स्थिति वही ढाक के तीन पात ही साबित हुई। ऐसे में माफियाओं से छुटकारे वाली बात सिर्फ चुनावी जुमला ही साबित होता दिखाई दे रहा है।