हिमाचल चुनाव: 1980 में 8 सीटें जीतने वाली कांग्रेस को मिली थी सत्ता

<p>हिमाचल में भले ही सियासी माहौल में सरकार बनाने के लिए 50 प्लस के दावे चुनावी कैम्पेन में सुनाई दे रहे हों। लेकिन हिमाचल की सियासत ने ऐसा दौर भी देखा था जब 8 सीटें जीतने वाली कांग्रेस को अचानक सत्ता में बैठने का मौका मिल गया था।</p>

<p>इसे सियासत का खेल ही कहेंगे कि 1977 के चुनाव में कांग्रेस पूरी 68 सीटों पर चुनाव भी नहीं लड़ पाई थी, लेकिन कुछ साल बाद ही माहौल ऐसा बना कि 8 विधायकों वाली इस पार्टी को जनता पार्टी के विधायकों और निर्दलीयों का सपोर्ट मिल गया और विपक्ष में बैठे ठाकुर रामलाल मुख्यमंत्री बन गए।</p>

<p>हिमाचल में पहली बार राज्य में कांग्रेस को छोड़कर किसी दूसरी पार्टी की सरकार बनने जा रही थी। कांग्रेस की इस चुनाव में बुरी तरह हारी। 1977 में लगी इमरजेंसी के बाद देशभर में चली जनता पार्टी की लहर में&nbsp; जनता पार्टी ने प्रदेश में 53 सीटें जीती। चुनाव में छह निर्दलियों ने भी जीत दर्ज की और बहुमत में आने के बाद शांता कुमार मुख्यमंत्री बने।</p>

<p>लेकिन तीन साल के अंदर ही प्रदेश की राजनीति में नया समीकरण बन गया। तीन साल के भीतर ही निर्दलीय और जनता पार्टी के कई विधायकों ने एकाएक कांग्रेस का दामन थाम लिया। इसके बाद जनता पार्टी की सरकार गिर गई और 1980 में रामलाल ठाकुर के नेतृत्व में कांग्रेस सत्ता में बैठ गई।</p>

<p>उस वक्त मुख्यमंत्री रहे शांता कुमार के मुताबिक, &quot;तब हिमाचल में सत्ता परिवर्तन देशभर में बदले हालात की वजह से हुआ था। दिल्ली में भारी राजनीतिक बदलाव हो रहा था। इसका असर प्रदेश की राजनीति पर भी पड़ने लगा। नई बनी जनता पार्टी के साथ कई निर्दलीय और दूसरी पार्टी के लोग शामिल थे। जब विधायक पार्टी छोड़कर कांग्रेस में जाने लगे तो मैंने 1980 में इस्तीफा दे दिया था।&quot;</p>

<p>1977 में सीएम शांता कुमार ने राष्ट्रीय नेता अटल बिहारी वाजपेयी को शिमला में रिज पर कार्यक्रम करने की परमिशन दे दी, लेकिन इंदिरा गांधी को चुनाव में शिकस्त देने वाले राजनारायण के कार्यक्रम के लिए परमिशन नहीं दी। इससे जनता पार्टी और निर्दलीय विधायकों में काफी नाराजगी थी। विधायकों ने शांता कुमार का विरोध भी किया, लेकिन जब वो नहीं माने तो 26 विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस के आठ विधायकों के साथ इन 26 विधायकों को मिलाकर कांग्रेस के 34 विधायक हो गए। इस बीच निर्दलीय रूपदास कश्यप ने भी कांग्रेस को समर्थन दिया। इससे जनता पार्टी की सरकार गिर गई।</p>

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