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विस चुनाव: हिमाचल में दलित वोट पर राजनीतिक दलों की नज़र क्यों?

पीं. चंद |

हिमाचल प्रदेश में कुल 68 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें से 17 सीटें अनुसूचित जाति के लिए  और 3 सीटें अनसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। जबकि 48 सीटें सामान्य वर्ग के लिए है। इसमें यदि बात दलित प्रतिनिधित्व की करें तो हिमाचल प्रदेश में  25 प्रतिशत दलित आबादी है। इस बार विस चुनावों में दलित वोट पर राजनीतिक दल पूरी नज़र रखे हुए नजर आ रहे हैं।

बता दें, कि 2012 के चुनाव में अनुसूचित जाति वर्ग के लिये आरक्षित सीटों में  चुराह से बीजेपी के हंस राज, इंदौरा से निर्दलीय मनोहर धीमान,  जयसिंहपुर में कांग्रेस विधायक यादविंद्र गोमा,  बैजनाथ में कांग्रेस के विधायक किशोरी लाल, आनी में कांग्रेस के खूब राम,  करसोग से कांग्रेस के ही सीपीएस मंशा राम,  नाचन से बीजेपी के विधायक विनोद कुमार, बल्ह कांग्रेस से कैबिनेट मंत्री प्रकाश चौधरी, भोरंज से अनिल धीमान बीजेपी,  चिंतपूर्णी से कांग्रेस के कुलदीप कुमार, झंडूता से बीजेपी के रिखी राम कौंडल।

सोलन से कैबिनेट मंत्री धनी राम शांडिल, कसौली से बीजेपी के राजीव सैजल, पच्छाद से सुरेश कुमार भाजपा, श्रीरेणुकाजी से कांग्रेस के सीपीएस विनय कुमार, रामपुर से कांग्रेस के सीपीएस नंद लाल, रोहड़ू से कांग्रेस के ही मोहन लाल बरागटा चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंचे थे। यानी कि 17 सीटों में से बीजेपी की झोली में मात्र 6 सीटें आई जबकि 10 सीटें जीतकर कांग्रेस पार्टी ने दलित वोट पर अपनी मजबूत पकड़ बनाई और एक सीट निर्दलीय ने जीती। अब बीजेपी दलित वोट को साधने के लिए इस मर्तबा दलित बहुल क्षेत्रों में दलित सम्मेलन करती नज़र आई। इस बार भाजपा की पूरी नज़र दलित वोट पर है। जिसके सहारे हिमाचल की सत्ता तक पहुंचने की पूरी जोर आजमाइश कर रही है।

 हिमाचल में अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिये 3 सीटें आरक्षित है। इन आरक्षित सीटों में भरमौर से कैबिनेट मंत्री ठाकुर सिंह भरमौरी, लाहौल स्पीति से कांग्रेस के रवि ठाकुर और किन्नौर से विधानसभा अध्यक्ष जगत नेगी विधानसभा का चुनाव जीतकर विधान सभा पहुंचे। यानी कि 2012 के चुनाव में कबायली इलाकों में बीजेपी का पूरी तरह सफाया हो गया था।

दूसरी और कांग्रेस पार्टी भी दलित वोट के अपने आधार को खिसकने नही देना चाहती है । इसलिए कांग्रेस ने भी हिमाचल में दलित सम्मेलन करवाने में कोई कसर नही छोड़ी। हालांकि,  प्रदेश के राजनीतिक इतिहास पर नज़र डालें तो पहाड़ी प्रदेश में चुनाव कभी जातिवाद पर आधारित नहीं रहा है। लेकिन, इस मर्तबा देखना होगा कि इन बीस सीटों पर कौन सी पार्टी सेंधमारी करती है।