लोकसभा चुनावों का शंखनाद हो चुका है। हिमाचल प्रदेश में चुनाव 19 मई को हैं। ऐसे में टिकट को लेकर कांग्रेस और बीजेपी ने अभी से माथापच्ची शुरू कर दी है। बीजेपी में टिकट को लेकर ज्यादा पेशोपेश नहीं है। क्योंकि हमीरपुर से अनुराग ठाकुर का नाम लगभग तय माना जा रहा है। शिमला और मंडी संसदीय क्षेत्र से भी यदि कोई बड़ा विरोध नहीं हुआ तो वीरेन्द्र कश्यप और रामस्वरूप का नाम लगभग फाइनल ही है। हां यदि किसी महिला का नाम आता है तो कुछ बदलाव हो सकता है। कांगड़ा से बीजेपी भी शांता कुमार को लड़ाने के पक्ष में है लेकिन यदि उम्र आड़े आती है तो कांगड़ा संसदीय सीट से बीजेपी नया चेहरा चुनावी मैदान में उतार सकती है।
टिकट आवंटन पर सबसे ज़्यादा माथापच्ची कांग्रेस को करनी पड़ेगी क्योंकि अभी तक कांग्रेस का एक भी नाम तय नहीं है। मार्च महीने में ही कांग्रेस हिमाचल में अपने प्रत्याशी दे देगी। लेकिन ये कौन होंगे अभी भविष्य के गर्भ में है। हां शिमला से धनीराम शांडिल और अमित नंदा के नाम की चर्चा जोरों पर है। कांगड़ा से दिग्गज नेता जीएस बाली यदि चुनाव के लिए हामी भरते हैं तो कांग्रेस के उम्मीदवार हो सकते हैं। इसके अलावा पूर्व सांसद चन्द्र कुमार, सुधीर शर्मा और पवन काज़ल के नाम की भी चर्चा राजनीतिक गलियारों में चल रही है।
हमीरपुर में टिकट पर कांग्रेस की लड़ाई जगजाहिर है। सुखविंदर सिंह सुख्खू और विपक्ष के नेता मुकेश अग्निहोत्री दोनों ही नेता चुनाव लड़ने के मूड़ में नहीं हैं। यही वजह है कि चुनाव को लेकर सुक्खू मुकेश अग्निहोत्री का नाम की पैरवी कर रहे हैं। हालांकि, उन्होंने अपने चुनाव लड़ने पर भी एक शर्त ज़रूर रखी है। दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह, राजिंद्र राणा के बेटे के नाम की पैरवी कर चुके हैं। अंत में हो सकता है कि राजिंद्र राणा के नाम पर हमीरपुर से सहमति बन जाए।
बचा मंडी संसदीय क्षेत्र तो यहां पर कांग्रेस ने अभी तक सभी विकल्प खुले रखे हैं। अभी किसी भी नेता का नाम मंडी से आगे नहीं आया है। हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह या उनके परिवार में से किसी एक को मंडी से चुनाव लड़वाने की अटकलें जोरों पर हैं लेकिन वीरभद्र सिंह चुनाव लड़ने से मना कर चुके है। कौल सिंह ठाकुर भी मंडी से कांग्रेस के पास एक विकल्प है। अटकलें तो पैराशूट उम्मीदवार की भी लगाई जा रही हैं। क्योंकि बीजेपी के भी कुछ नेता मंडी से कांग्रेस की टिकट के तलबगार बताए जा रहे हैं। ऐसे में देखना यही होगा कि सियासत का कौन सा मोहरा किस तरफ फिट बैठता है।