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एक और पत्रकार की हत्या, रेत-माफियाओं के खिलाफ चलाई थी मुहिम

समाचार फर्स्ट डेस्क |

आवाज़ को दबाने की कोशिश की हद क्या होती है, यह बीते दो दिनों में अलग-अलग प्रांतों में हुई पत्रकारों की हत्याओं से अंदाजा लगाया जा सकता है। बिहार में दो पत्रकारों के मारे जाने के अगले ही दिन मध्य प्रदेश में भी एक पत्रकार की संदिग्ध मौत की ख़बर है।

मौके से मिली जानकारी के मुताबिक मध्य प्रदेश के भिंड में पत्रकार संदीप शर्मा की ट्रक से कुचलकर मौत हो गई। पत्रकार ने मध्य प्रदेश में रेत माफिया और एक पुलिस अधिकारी के खिलाफ स्टिंग ऑपरेशन किया था। इसके बाद से उन्हें जान से मारने की धमकी मिल रही थी। इस धमकी के बारे में संदीप ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र भी लिखा था।

इस एक्सिडेंट में मिले सीसीटीवी फुटेज में साफ दिख रहा है कि ट्रक ने इंटेंशनली पत्रकार संदीप शर्मा को कुचलने का काम किया है। मामले में शक और गहराने का कारण यह भी है कि जिस ट्रक से संदीप शर्मा की मौत हुई है, वह चोरी किया गया था और घटना के वक़्त खाली था। ड्राइवर भी मौके से फरार होने में कामयाब रहा।

मध्य प्रदेश में खनन माफियाओं का प्रदेश सरकार में रसूखदार लोगों से कनेक्शन रहा है। हर वक़्त पर यह नेक्सस उजागर होता रहा है। यही हाल बिहार में भी है। जिन दो पत्रकारों को मारा गया इनमें दैनिक भास्कर के नवीन निश्चल और दूसरी संस्था से जुड़े विजय सिंह हैं। इन्हें भी इनकी निष्पक्ष रिपोर्टिंग को लेकर धमकियां मिल रही थीं।

मामले पर क्यों नहीं उठ रहीं आवाजें?

बीते 30 घंटे के भीतर दो राज्यों में पत्रकारों की कुचल कर संदिग्ध मौत हो जाती है। लेकिन, अफसोस कहीं से इसके खिलाफ आवाज़ नहीं उठ रही है। हालात ये हैं कि मीडिया में भी इन घटनाओं पर ज्यादा शोर नहीं है। दूसरी तरफ वो जमातें भी यहां बोलती हुईं दिखाई नहीं दे रही हैं, जो गौरी लंकेश के मुद्दे पर सरकार को घेरा करती थीं। हत्या हर दशा में निंदनीय है, चाहें वो गौरी लंकेश की हो या बिहार के नवीन, विजय या फिर मध्य प्रदेश के संदीप शर्मा की। आवाज को दबाने वालों के खिलाफ बिगुल हर हाल में फूंकना चाहिए।

जरूरी है कि इन राज्यों की सरकारों को भी घेरा जाए कि क्या वे इन मामलों में निष्पक्ष जांच कराएंगी? खनन माफियाओं से जुड़े मामलों में एकजुट तथा निर्भिक होकर लिखने की जरूरत है। ऐसे तत्व ना सिर्फ एक राज्य बल्कि सभी राज्यों में मौजूद हैं और लोकतंत्र के लिए बड़ा ख़तरा हैं।